वाराणसी। कोरोना काल में लाकड़ाउन के कारण जहाँ एक ओर नॉनिहाल पाठ्यक्रम से दूर मनोरंजन के अन्य माध्यमों में व्यस्त हैं वहीं वाराणसी के कश्मीरीगंज इलाके का निवासी 12 वर्षीय कृष्णा सिंह इस आपदा को अवसर में बदल रहा है। लॉकडाउन में स्कूल के ऑनलाइन होने के कारण स्कूली छात्र घर पर रहने को मजबूर रहें कुछ छात्र पढ़ाई तो कुछ वीडियो गेम आदि में समय व्यतीत करने लगें, पर अपने दादा श्री गोदावरी सिंह से प्रभावित यह नन्हा बालक लॉकडाउन के इस काल में अपने पुरखों की विरासती कला को संरक्षित करने में लगा रहा।
हमसे बातचीत में कृष्णा ने बताया कि ऑनलाइन क्लास करने के बाद बचे हुए समय में वह अपने दादा के मार्गदर्शन में लकडी के खिलौनों के निर्माण कला को बड़ी ही बारीकी से सीखता है, मात्र 12 वर्ष की आयु में कृष्णा ने पारंपरिक सिंदूर दान, लकड़ी के शिवलिंग, लट्टू एवं अन्य खिलौनों के निर्माण कला का ज्ञान प्राप्त किया है। इन नाज़ुक हाथों से इतनी बारीक कारीगरी कर पाना वाकई आश्चर्यजनक है। कृष्णा ने बताया कि वो आगे चलकर अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपने पूर्वजों की इस कला को भी आगे बढ़ाना चाहता है। गौरतलब है कि जहाँ वर्तमान परिदृश्य में युवा इस विश्व प्रसिद्ध खिलौना निर्माण की कला से दूर जा रहा है वहीं इस नन्हे बच्चे के जज़्बे से खिलौना उद्योग का भविष्य उज्जवलित होता नज़र आ रहा है। साथ ही साथ इस बच्चे से प्रेरणा लेकर और भी कई युवा अपने पुरखों की विरासती कला से जुड़ेंगे और इसे नए आयाम तक ले जाएंगे।
विश्व प्रसिद्ध है वाराणसी का खिलौना उद्योग:-
बनारस में लकड़ी के खिलौनौं का खास महत्व है। यहां पर रसियन डॉल, अशोक स्तंभ नक्कासी, फ्लोअर पॉट, ज्वेलरी बॉक्स, गोल डिब्बे, लैंप, शो पीस के साथ ही लकड़ी के हाथी, घोड़े, साइकिल, बाइक, रिक्शा आदि विशेष कारीगरी के साथ बनाए जाते हैं। कोरैया और यूकेलिप्टस की लकड़ियों पर नक्काशी कर प्राकृतिक और गैर हानिकारक रंगों के प्रयोग से विभिन्न आकार एवं आकृति के खिलौने बनाए जाते हैं, जिन्हें साज-सज्जा के साथ-साथ बच्चों के खेलने और सीखने में इस्तेमाल किया जाता है। आपको बता दें कि लगभग 65 से 70 साल से चली आ रही इस कला ने विश्व भर में अपनी पहचान बना रखी है।