नई दिल्ली, 26 अप्रैल । देश में वैश्विक कोरोना महामारी से जो संकट उठ खड़ा हुआ है, उसमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) लोगों के जीवन में प्राणवायु बनकर आया है। इस संस्था ने अब तक लाखों लोगों को जीवनदान दिया है। लेकिन, कम लोग वाकिफ होंगे कि जब एम्स के निर्माण व नींव रखने की बात आई थी, तब तत्कालीन केंद्र सरकार के पास इतने रुपये नहीं थे कि इस परियोजना को हकीकत में बदलने का सपना भी देख सके।
लेकिन, अच्छे काम कहां किसी के रोके रुकते हैं! वही हुआ। एक महिला ने आगे बढ़कर भारत के इस सपने को साकार कर दिया, उनका नाम था- राजकुमारी अमृता कौर।
यह आश्चर्य करेंगे कि देश का पहला ‘एम्स’ नेहरु मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री रहीं राजकुमारी अमृता कौर के व्यक्तिगत प्रयासों से शुरू हो सका था। इस संबंध में एतिहासिक तथ्य है कि जब 1952 में एम्स बनाने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सामने रखा गया था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने यह कहकर मना कर दिया था कि अभी ऐसे किसी संस्थान को बनाने का बजट हमारे पास नहीं है। दूसरे जरूरी काम हैं, जिन्हें पहले करना है।
रुपये की कमी की बात सुनकर राजकुमारी अमृता कौर ने फंड जुटाने का जिम्मा उठाया। वे राजघराने से संबंध रखती थीं। स्वाभाविक है कि उनके पास अचल संपत्तियां थीं। उन्होंने शिमला की अपनी एक महत्वपूर्ण प्रॉपर्टी बेच दी। इस तरह स्वयं से शुरू करते हुए इस पुण्य कार्य में उन्होंने अनेक लोगों का सहयोग लिया। आखिरकार दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का सपना साकार हो सका। इसकी आधारशिला 1953 में रखी गयी और इसका सृजन 1956 में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से एक स्वायत्त संस्थान के बतौर स्वास्थ्य देखभाल के सभी पक्षों में उत्कृष्टता को पोषण देने के केन्द्र के रूप में कार्य करने हेतु किया गया।
इस एक एम्स निर्माण के बाद देश में कई सरकारें आईं और गईं। परन्तु, इसी प्रकार का दूसरा बड़ा मेडिकल संस्थान देश में जल्द खड़ा नहीं हो सका। फिर नया एम्स खुलने में देश में 56 सालों तक इंतजार करना पड़ा।
एम्स के इतिहास में दूसरी पहल सुषमा स्वराज ने की
वर्ष 2002 तक दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) इकलौता देशभर में सबसे बड़ा स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाला केंद्र रहा। लेकिन, 2003 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़ी राजनेता सुषमा स्वराज ने इसके विस्तार को लेकर पहल करना शुरू किया। तब कहीं जाकर इसे अन्य राज्यों में खड़ा किया जा सका।
जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज बनाई गईं तो उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि दिल्ली के ‘एम्स’ भारी दबाव रहता है। देश भर से मरीजों को दिल्ली आना पड़ता है। ऐसे में क्यों न इस दबाव को कम किया जाए। दूर-दूर से जो लोग पूर्ण स्वास्थ्य की कामना से दिल्ली एम्स आते हैं, क्यों न एम्स को ही उन लोगों की सहज पहुंच तक पहुंचाया जाए।
यह वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल को अच्छी लगी और इस परियोजना को तत्काल सहमति मिल गई। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल, उड़ीसा में भुवनेश्वर, राजस्थान के जोधपुर, बिहार की राजधानी पटना, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और उत्तराखण्ड के ऋषिकेश को मिलाकर कुल छह जगह नये ‘एम्स’ स्थापित करने का निर्णय कार्य शुरू हो गया। यह अलग बात है कि उनके निर्माण होते तक केंद्र की अटल सरकार बदल गई और इसके उद्धाटन क जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिं पर आ गई। इसके बाद तत्कालीन मनमोहन सरकार ने 2013 में एक मात्र नये एम्स की घोषणा कर पाई, जिसका कार्य रायबरेली में अभी निर्माणाधीन है।
मोदी सरकार ने लिखा इतिहास, दी 20 नए एम्स को मंजूरी
देश में इन आठ ‘एम्स’ के अतिरिक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल तक देश में 20 नए एम्स बनाने को मंजूरी दे चुके हैं। इसके लिए जरूरी कार्य भी शुरू कर दिये गए हैं। मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स की घोषणा की। इसके बाद 2015 में सात नए एम्स और 2017 में दो एम्स का ऐलान किया। इस तरह 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ठीक पहले मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स बनाने की बात कही। जम्मू-कश्मीर संबा से लेकर देश के अन्य सुदूर हिस्सों में एम्स के निर्माण का कार्य चल रहा है।
राजकोट में ‘एम्स’ की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री ने प्रमुखता से कहा था, “आजादी के इतने दशकों बाद भी सिर्फ छह एम्स ही बन पाए थे। साल 2003 में अटलजी की सरकार ने छह नए एम्स बनाने के लिए कदम उठाए थे। उन्हें बनाते-बनाते 2012 आ गया था। यानी नौ साल लग गए थे। बीते छह सालों में 10 नए एम्स बनाने पर काम हो चुका है, जिनमें से कई आज पूरी तरह काम शुरू कर चुके हैं। एम्स के साथ ही देश में 20 एम्स जैसे सुपर स्पैशिलिटी हॉस्पिटल्स पर भी काम किया जा रहा है'।”
उल्लेखनीय है कि सभी एम्स कोरोना (कोविड-19) वायरस के महासंकट के समय में हजारों लोगों की जान बचा चुके हैं। दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया उपचार के साथ-साथ वर्चुअल माध्यम से लोगों को प्रशिक्षित करने का भी कार्य कर रहे हैं। वहीं नागपुर एम्स की निदेशक मेजर जनरल डॉ. विभा दत्ता कहती हैं, ''मेरा मानना है कि एक डॉक्टर के रूप में जान बचाने से बड़ा कोई रोमांच नहीं है। इसकी कुंजी नवाचार और प्रयोग है। इसलिए हम इसे ही फोकस करते हुए अपने कार्य में लगे हुए हैं।'' डॉ. विभा ने आगे कहा कि नागपुर ‘एम्स’ ज्ञान संरचनाकारों का पोषण कर ज्ञान के सृजन के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा यह प्रयास पेशेवर, शिक्षण, अनुसंधान और नवाचार कौशल को बढ़ावा दे रहा है।
इसी प्रकार भोपाल ऐम्स के निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रो. सरमन सिंह कहते हैं, “सस्ती और विश्वसनीय स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना, गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के माध्यम से डॉक्टरों की महत्वपूर्ण संख्या को बढ़ाने के साथ स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाना और अनुसंधान के नए आयाम स्थापित करना ही हमारी संस्थान का कार्य है।” आगे उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा, अध्ययन और शोध के क्षेत्र में हम तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे हैं।
कुल मिलाकर देश भर के एम्स स्वास्थ्य सेवा और शोध के क्षेत्र में नई ऊंचाई छूने को लालायित हैं। इस दिशा में वे पूरे लगन से कार्य कर रहे हैं। कोरोना महामारी से निपटने में इनका योगदान अभूतपूर्व है। यकीनन, समाज इनके योगदान को स्मरण करेगा।