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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना वैक्सीन के अवैध क्लिनिकल ट्रायल के मामले में एक छात्र को ज़मानत दीं।

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Posted On:Thursday, June 24, 2021

प्रयागराज, 24 जून 2021
 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को कोविड -19 वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में छात्र को ज़मानत दे दीं है।

न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकल पीठ ने सुधाकर यादव द्वारा दायर आपराधिक विविध जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत यह आदेश पारित किया। सुधाकर ने अपने खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं और मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत पुलिस स्टेशन दादरी, जिला गौतमबुद्धनगर में दायर मामले में जमानत मांगी थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार 16 फरवरी, 2021 को सीएचसी दादरी के चिकित्सा अधीक्षक को सोशल मीडिया के माध्यम से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, जीटी रोड के पास स्थित गोपाल पैथोलॉजी लैब में नोवेल कोरोनावायरस के खिलाफ जनता के लिए मुफ्त टीकाकरण अभियान चलाए जाने की जानकारी मिली इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारी को दी गई, जिन्होंने बाद में बागपत के ड्रग इंस्पेक्टर डॉ संजीव कुमार से इसकी जांच कराई। जाँच में अधिकारियों ने पाया कि मौके पर नारी रक्षा दल की मदद से निशुल्क कोविड-19 टीकाकरण शिविर का आयोजन किया जा रहा था और वहाँ इसका बैनर भी बरामद हुआ था।

जब जांच अधिकारियों ने लैब में प्रवेश किया, तो एक व्यक्ति को वैक्सीन का इंजेक्शन लगाते हुए देखा गया, जिसने अपना नाम रिजवान अली बताया और पूछताछ पर यह बताया गया कि वह और एफ़आईआर में नामित अन्य आरोपी फ्लोर्स नामक अस्पताल के कर्मचारी थे, जिन्हें अस्पताल द्वारा टीकाकरण के लिए अधिकृत किया गया था लेकिन जब निरीक्षण दल ने इस संबंध में कागज की मांग की तो उन्हें कोई दस्तावेज हाथ नहीं लगा।
आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया कि आवेदक निर्दोष है और उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। वकील ने कहा कि आवेदक एमएससी क्लिनिकल रिसर्च के चौथे सेमेस्टर का छात्र है जो उत्तराखंड के देहरादून में इंस्टीट्यूट ऑफ हिमगिरी जी यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है।

यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि विश्वविद्यालय द्वारा एमएससी, क्लिनिकल रिसर्च का पाठ्यक्रम, इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च इंडिया (आईसीआरआई) की देखरेख में चलाया जा रहा था। आवेदक को आईसीआरआई की सहमति से ग़ाज़ियाबाद के फ्लोर्स अस्पताल में इंटर्नशिप के लिए भेजा गया है। अधिवक्ता ने कहा कि प्राथमिकी या सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज मुखबिर के बयान में आवेदक की कोई भूमिका नहीं सौंपी गई है। उन्होंने आगे कहा कि आवेदक ने क्लिनिकल ट्रायल में न तो क्लीनिकल ट्रायल नियमों का उल्लंघन किया है और न ही स्वयंसेवकों को टीकाकरण के प्रति आश्वस्त कराकर कोई अपराध किया है।
 
वकील ने बताया कि गोपाल पैथोलॉजी लैब में क्लिनिकल ट्रायल के लिए सहमति पत्र पर स्वयंसेवकों के हस्ताक्षर प्राप्त किए गए हैं और स्वयंसेवकों को टीकाकरण के लिए सहमत होने में कुछ भी छुपाया नहीं गया है और इस तरह धारा 420 आईपीसी के तहत उनपर कोई अपराध नहीं बनता है ।

आवेदक के वकील ने यह भी कहा कि दर्ज एफ़आईआर में लगाए गए आरोपों से आवेदक के खिलाफ भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम की धारा 15(2) और 15(3) के तहत कोई अपराध नहीं बनता है वहीं आवेदक 16 फरवरी 2021 से जेल में सजा काट रहा है।

वहीं अतिरिक्त शासकीय वकील ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपनी दलील अदालत के समक्ष पेश की।

कोर्ट ने दलील सुनने पर मामले का अवलोकन करते हुए आदेश दिया की, “सुधाकर यादव को संबंधित अदालत की संतुष्टि के लिए एक व्यक्तिगत बांड और समान राशि की दो ज़मानती देने पर जमानत पर रिहा किया जाए। इसके अलावा, रिहाई आदेश जारी करने से पहले जमानत सत्यापित की जानी चाहिए।”
 


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