मुंबई, 23 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। किताबें इतिहास की अहम दस्तावेज होती हैं, लेकिन कई किताबे नए विवादों को भी जन्म दे देती हैं। ऐसा ही एक विवाद रीता बहुगुणा जोशी की लिखी किताब से सामने आ रहा है। प्रयागराज से भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने अपने स्वर्गीय पिता और उत्तर प्रदेश के पूर्व CM हेमवती नंदन बहुगुणा जोशी के जीवन पर एक किताब लिखी है। 325 पेज की यह किताब 'हेमवती नंदन बहुगुणा: भारतीय जनचेतना के संवाहक' में कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री समेत तमाम नेताओं का जिक्र है। आपको बता दे, हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस के बड़े नेता थे, बावजूद इसके उनका पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कई मुद्दों पर मतभेद रहता था। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह से भी रहे गहरे मतभेदों को इस किताब में जगह दी गई है। इतना ही नहीं, संजय गांधी, अमिताभ बच्चन और केंद्रीय मंत्री रहीं राजेंद्र कुमारी बाजपेई की कहानियों ने भी कई सवाल खड़े किए हैं। यह किताब विमोचन से पहले ही सुर्खियों में है और विवादों में भी।
तो वही प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी की इस किताब का विमोचन उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू 4 मई को दिल्ली में करेंगे। रीता का कहना है कि इस किताब का पहला संस्करण 1997 में आया था, लेकिन तब इसका विमोचन नहीं हुआ था। कोरोना काल में रीता ने इस पुस्तक में कुछ जरूरी संशोधन किए और इसका अंग्रेजी अनुवाद भी कराया है। रीता के मुताबिक किताब में 50 साल का इतिहास है। उनके पिता का राजनीति में जुड़ना और उनके संघर्ष का इतिहास है। किताब में इमरजेंसी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। आजादी की लड़ाई के समय किस तरह से नेताओं ने अपने लक्ष्य बनाए इसके बारे में भी लिखा गया है। कैसे राष्ट्रभक्ति और सिद्धांतों के आधार पर नेताओं ने राजनीति की, इसके बारे में लिखा गया है। कैसे जनता पार्टी बनी और टूटी, इसके बारे में भी जिक्र किया गया है।
किताब में किस किस का जिक्र -
अपनी किताब में रीता ने कांग्रेस के कई दिग्गजों का जिक्र हेमवती नंदन बहुगुणा के संदर्भ में किया है। उन्होंने लिखा है कि हेमवती नंदन नहीं चाहते थे कि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को देश की बागडोर मिले। उनका मानना था कि वह कुंठित मानसिकता के व्यक्ति हैं। यदि वो शीर्ष पद पर बैठे तो राष्ट्र बर्बाद हो जाएगा। यह भी बताया है कि वीपी सिंह को कांग्रेस की सदस्यता और पहली बार टिकट भी उनकी मां कमला बहुगुणा ने दिलाया था। रीता बहुगुणा जोशी ने अपने पिता के संघर्षों की कहानी लिखते हुए संजय गांधी का भी जिक्र किया है। रीता ने लिखा है कि बहुगुणा और इंदिरा के मतभेद बढ़ चुके थे। कांग्रेस छोड़ने से पहले उन्होंने 1980 के चुनाव में तीस लोगों के लिए टिकट मांगा। इंदिरा ने मना कर दिया, तब कांग्रेस पर संजय गांधी का खूब प्रभाव था। लोग उनके आगे-पीछे ही घूमते थे। बहुगुणा ने अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया और संजय गांधी के पास टिकट के लिए नहीं गए। इमरजेंसी का भी उन्होंने विरोध किया था। फोन पर इंदिरा से कहा था कि ये क्या कर दिया। वह फासीवादी विचारधारा के सख्त खिलाफ थे। भाजपा सांसद ने लिखा है कि हेमवती नंदन बहुगुणा कभी नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे राजनीति में आएं। वे इस क्षेत्र को बहुत कठिन मानते थे और अवसरवाद के सख्त खिलाफ थे। 1984 में जब अमिताभ बच्चन उनके सामने चुनाव लड़े तो वे आश्वस्त थे कि जीत उन्हीं की होगी, लेकिन हारने के बाद बहुत आहत हुए। उसके बाद से उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी।