नई दिल्ली, 26 फरवरी (न्यूज़ हेल्पलाइन) विगत दिनों रूस द्वारा यूक्रेन (Ukraine) पर एकतरफा हमला करने के साथ ही यूक्रेन और रूस में युद्ध (Ukraine conflict) छिड़ गया। इस मामले में यूक्रेन के राजदूत द्वारा भारत से बारम्बार सहायता की मांग के बाद भी भारत सरकार का रुख तटस्थ जैसा रहा।
हालांकि भारत और रूस के मध्य के रिश्तों को देखते हुए सिर्फ यूक्रेन (Ukraine) ही नहीं बल्कि कई ताकतवर पश्चिमी देश भी भारत को बहुत उम्मीद भरी नजरों से देख रहे थे, मगर युद्ध शुरू होने के पहले और उसके बाद भारत बस एक ही बयान देता रहा कि दोनों देशों (Russia-Ukraine) को बातचीत के द्वारा समाधान करना चाहिए। मगर जिस भारत का हर अन्तरराष्ट्रीय मामले में सही को सही, और गलत को गलत कहने का ट्रैक रहा है, वह एकाएक चुप क्यों हो गया? आखिर ऐसी क्या मजबूरी है भारत की? तो बता दें कि यूक्रेन और रूस की यह समस्या (Ukraine conflict) जो अभी युद्ध तक पहुंच गई है, वह नई नहीं है। सोवियत संघ के विघटन के बाद और फिर पुतिन के उभार के बाद से ही यह मुद्दा गर्म था, जिसे अन्ततः पुतिन ने युद्ध के हथौड़े से हमला बोल कर अंजाम तक पहुंचा दिया।
अब भारत की क्या मजबूरी थी? सर्वप्रथम तो भारत अगर यूक्रेन (Ukraine) के मुद्दा उठाता तो रूस भी कश्मीर के मुद्दे पर भारत को घेर सकता था। दूसरा अगर भारत रूस से युद्ध छोड़ने को कहता तो भी रूस मानने वाला तो था नहीं, बल्कि इसका परिणाम भारत-रूस के रिश्तों पर नकारात्मक रूप से पड़ता, यह जरूर तय था।
ज्ञात हो कि विगत महीने ही पुतिन ने भारत का दौरा करके अपनी प्रगाढ़ता का प्रर्दशन किया था। तब भारत और रूस के मध्य कई संधियां भी हुई थी। यूक्रेन (Ukraine) के समर्थन करने से भारत और रूस के मध्य जारी इन संधियों पर भी नकारात्मक असर होता। अब सभी मंचों पर यह बात उठाई जा रही कि जो भारत UN सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की आकांक्षा रखता है, उसका इतने बड़े मुद्दे पर तटस्थ रुख उसके सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के दावों को कमजोर करेगा। हां, यह बात तो सत्य है कि अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देश भारत के उस रुख पर राजनीति करते हुए भविष्य में सवाल तो जरूर खड़े करेंगे। तो यह कहा जा सकता है कि भारत ने अभी भविष्य के अनुसार नहीं बल्कि अपने वर्तमान जरूरत के अनुसार यह रुख़ अपनाया है।
साथ ही भारत भी यह कहते हुए पश्चिमी देशों को मुहतोड़ जवाब दे सकता है कि पश्चिमी देशों ने भी रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के अलावे कुछ नहीं किया। हालांकि, इन देशों में से कई रूस के समकक्ष या ज्यादा ताकतवर थे। अगर वे दल-बल के साथ यूक्रेन का साथ देते तो हो सकता था कि रूस पीछे हट जाता।