नई दिल्ली, 3 अगस्त 2021 पूर्व विदेश सचिव विजय केशव गोखले के द्वारा यह आरोप लगान लगाने पर कि अमेरिका के साथ भारत के परमाणु सौदों को रोकने के लिए चीन ने भारत के लेफ्ट पार्टियों के साथ सांठगांठ करके भारत-अमेरिका परमाणु डील को रोकने का प्रयास किया, पर भारत के लेफ्ट पार्टियों के कई बड़े नेताओं ने पलटवार किया है।
दरअसल इस विवाद कि शुरुआत तब हुई जब पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने हाल ही जारी अपनी पुस्तक 'द लॉन्ग गेम: हाउ द चाइनीज़ नेगोशिएट विद इंडिया' में लेफ्ट पार्टियों को कटघड़े में खड़े करने की कोशिश की। अपनी पुस्तक में पूर्व विदेश सचिव ने दावा किया है कि 2007 और 2008 के बीच भारत-अमेरिका परमाणु सौदे के दौरान चीन ने भारत में लेफ़्ट पार्टियों के साथ 'क़रीबी संबंधों' का इस्तेमाल करके 'घरेलू विपक्ष तैयार' किया था और डील को रोकने के प्रयास में इन ताकतों ने चीन का साथ दिया था। इस दावे पर लेफ्ट पार्टियों ने गोखले पर पलटवार शुरू कर दिया है।
इस मुद्दे पर आरोपों का जवाब देते हुए वरिष्ट सीपीएम नेता हन्नान मुल्ला ने कहा, “भारत में, बुर्जुआ सत्तारूढ़ दल अमेरिका और इज़राइल के एजेंट के रूप में काम करते हैं। वामपंथ का कभी विदेशी प्रभाव नहीं रहा। उनकी स्वतंत्र समझ है। वामपंथियों ने राष्ट्र विरोधी काम नहीं किया।”
दूसरी तरफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता बिनॉय विस्वाम ने गोखले के दावे को मूर्खतापूर्ण और गैरजिम्मेदाराना करार देते हुए कहा, ”'ऐसे गैर-जिम्मेदाराना और मूर्खतापूर्ण दावों पर कोई जवाब देने की जरूरत नहीं है। भारत में लेफ्ट पार्टियां किसी भी अन्य दक्षिणपंथी दल या फिर नौकरशाही के मुकाबले ज्यादा देशभक्त रही हैं।”
ज्ञात हो कि विजय गोखले को चीन पर नज़र रखने वालों में देश के सबसे बड़े जानकारों में शुमार किया जाता है और जिस दौरान (साल 2007 से लेकर 2009 तक) भारत-अमेरिका परमाणु समझौता पर बात चल रही थी उस समय विदेश मंत्रालय में वे संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) के तौर पर तैनात थे और चीन के मामले को देख रहे थे। उन्होंने अपने प्रोफेशनल करिअर का लगभग बीस साल चीन से संबंधित क्षेत्र में व्यतीत किया है।