नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (न्यूज हेल्पलाइन) पुरुष-पुरुष और महिला-महिला विवाह की आशा के साथ दिल्ली हाई में केस लड़ रहे समलैंगिक अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों और संस्थाओं को केंद्र सरकार से एक बार फिर से निराशा हाथ लगी है। समलैंगिक लोगों के बीच विवाह को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से मांगे गए जवाब पर केंद्र सरकार ने एक बार फिर अपना रुख साफ कर दिया है।
केंद्र सरकार ने कल सोमवार 25 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का समलैंगिक विवाह से कोई लेना-देना नहीं है और वैध विवाह केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच ही हो सकता है। नवतेज सिंह जौहर मामले पर केंद्र सरकार ने साफ किया कि उसने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया, लेकिन उसमें शादी की बात नहीं कही गई है।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने कुछ महीने पूर्व भी इस बारे में ऐसी ही राय रखी थी। तब केंद्र सरकार ने कहा था कि समलैंगिक शादी का विचार भारतीयों के लोकाचर और संस्कृति के पक्ष में नहीं है और कानून केवल पुरुष और महिला के बीच विवाह को मान्यता देता है। हमारे कानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। हमारे यहां विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है।
केंद्र सरकार के तरफ से बोलते हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा था कि हिन्दू विवाह अधिनियम में भी विवाह से जुड़े विभिन्न प्रावधान संबंधों के बारे में पति और पत्नी की बात करते हैं, समलैंगिक विवाह में यह कैसे निर्धारित होगा कि पति कौन है और पत्नी कौन। पीठ ने यह माना कि दुनिया भर में चीजे बदल रही हैं, लेकिन यह भारत के परिदृश्य में लागू हो भी सकता है और नहीं भी।
ज्ञात हो कि समलैंगिक विवाह पर आए नए अपीलों के मद्देनजर दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बारे में केंद्र सरकार से फिर से राय जानने का प्रयास किया था। ताज़ा अपील OCI (Overseas Citizenship of India) कार्डधारक जॉयदीप सेनगुप्ता तथा उनके साथी रसेल ब्लेन स्टीफेंस के द्वारा दायर की गई है।
इस अपील में जॉयदीप सेनगुप्ता और स्टीफेंस के वकील करुणा नंदी ने दिल्ली हाई कोर्ट बताया, कि जोड़े ने न्यूयॉर्क में शादी की है। उनके मामले में नागरिकता अधिनियम 1955, विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 तथा विशेष विवाह अधिनियम, 1954 कानून लागू होता है। उन्होंने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 7ए (1) (डी) पर प्रकाश डाला, जो विषमलैंगिक, समान-लिंग या समलैंगिक पति-पत्नी के बीच कोई भेद नहीं करता है। इसमें प्रावधान है, कि भारत के एक विदेशी नागरिक से विवाहित एक 'व्यक्ति', जिसका विवाह पंजीकृत है और दो साल से अस्तित्व में है, को OCI कार्ड के लिए जीवनसाथी के रूप में आवेदन करने के लिए योग्य घोषित किया जाना चाहिए।
इसके अलावे अभिजीत अय्यर मित्रा, वैभव जैन और डॉ. कविता अरोड़ा ने भी समलैंगिक विवाह को भारत में मान्यता देने संबंधी अपील की है। दिल्ली हाई कोर्ट इन सभी याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई कर रहा है। इन सभी अपीलों पर सुनवाई करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने सभी पक्षों को अपनी दलीलें पूरी करने के लिए और समय दिया है। इसी संदर्भ में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से फिर से राय मांगी थी। फिलहाल अभी दिल्ली हाई कोर्ट का फ़ैसला आना बाकी है, और यह केंद्र सरकार की राय से अलग भी हो सकता है।