सूरत, 2जुलाई 2021
शहर के कुछ इलाकों में अशांत धारा के चलते प्रॉपर्टी खरीदना बेचना या किराए पर देना बहुत ही जटिल काम हो चुका है। अशांत धारा के कारण चिन्हित किए गए इलाकों में ना केवल अंतर धार्मिक प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री में सरकारी काम बढ़ जाता है बल्कि घरेलू प्रॉपर्टीज घर में ही किसी को गिफ्ट करना है तो उसमें भी अशांत धारा सर्टिफिकेट लेना जरूरी है। साल 2018 से वार्ड नंबर 1 से वार्ड नंबर 10 तक इसे सीमित रखा गया था। इन इलाकों में मजूरा गेट से होते हुए दिल्ली गेट तथा भागल चौक बाजार के इलाके आते हैं। लेकिन अब अप्रैल 2021 में उधना, लिंबायत समेत करीब 25 से 30 जगहों पर इस अशांत धारा को बढ़ा दिया गया है। इसमें से कई सारे घरेलू पेज फर्स्ट चुके हैं जिसमें कोई चाचा अपने भतीजे या कोई मां अपने बेटे को प्रॉपर्टी गिफ्ट के तौर पर देना चाहती है लेकिन अशांत धारा लगने के कारण उन सभी मामलों में पहले अतिरिक्त जांच पड़ताल जरूरी हो गई है। मिली जानकारी के मुताबिक ऐसी जगहों की खरीद बिक्री के लिए पहले कलेक्टर से परमिशन लेनी होती है। शुरुआती दौर में सरकार ने उन इलाकों को चिन्हित किया था जिसमें अलग-अलग धर्म के लोग रहते हैं। सर्वे करने के बाद उन्होंने वार्ड नंबर 1 से वार्ड नंबर 10 के इलाकों में अशांत धारा लगा दी थी। हाला की शुरुआत से ही अशांत धारा रेजिडेंशियल और कमर्शियल दोनों पर लागू थी लेकिन अब लिंबायत जोन में लगने से कमर्शियल का एक बड़ा हिस्सा उसके अंतर्गत आ चुका है। इतना ही नहीं आसान धारा के इलाकों में प्रॉपर्टी की खरीद बिक्री के अलावा पावर ऑफ अटॉर्नी के लिए भी अशांत धारा जरूरी है और अगर उस इलाके में कोई किराए पर घर लेता है तो उसे भी अशांत धारा सर्टिफिकेट की जरूरत होगी।
लिंबायत जोन का काफी हिस्सा अशांत धारा के तहत आने लग गया। सलाबतपुरा इलाके में कपड़ा मार्केट का काफी हिस्सा आ जाता है और यह भी लिंबायत जोन का हिस्सा है। इसलिए अब वहां पर प्रॉपर्टी की खरीद बिक्री को लेकर अशांत धारा के सर्टिफिकेट की आवश्यकता होगी। इस बात को लेकर सूरत मर्केंटाइल एसोसिएशन द्वारा कलेक्टर संजय ओक से मार्केट से अशांत धारा हटाने को लेकर चर्चा की गई जिसके बाद कलेक्टर ने इस विषय पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया है।
केस एक
चाचा भतीजे को नहीं दे पा रहा दुकान
28 जून को कलेक्टर में एक अर्जी की गई थी। इस मामले में रेशम वाला के पास न्यू टेक्सटाइल टावर की आई/201 दुकान चाचा अपने भतीजे को गिफ्ट करना चाहता है। लेकिन स्टैंप ड्यूटी भरकर सीधे गिफ्ट डीड नहीं कर सकते।इनकी अर्जित कलेक्टर में चल रही है। परमिशन मिलने के बाद ही यह गिफ्ट कर सकते हैं। औसतन 30 से 40 दिनों के अंदर परमिशन मिल जाती है।
केस दो
सुमित्रा नाम की महिला कोलकाता में रहती है और उसके बेटे सूरत में रहते हैं।कोरोना काल में बार-बार कोलकाता से सूरत आना संभव नहीं हो पा रहा था। इसलिए वह अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी बेटे के नाम करवाना चाह रही थी। कि अगर मां वहां से नहीं आ पा रही है तो बेटा खुद दस्तावेज किसी के नाम पर करा सकता है। जून में सुमित्रा 2 दिन के लिए आई थी लेकिन तब उसे पता चला कि अशांत धारा उस प्रॉपर्टी पर लागू हो चुकी है। और इस मामले में 1 महीने तक का समय लग जाएगा।
प्रोसीजर
खरीदा और बेचने वाले को एक एक नोटरी एफिडेविट अपनी तरफ से देनी होती है। जिसमें खरीदने वाला कहता है कि मैं यह प्रॉपर्टी खरीदना चाहता हूं और बेचने वाला लिखता है कि मैं यह प्रॉपर्टी बेचना चाहता हूं।
अगर गिफ्ट है तो कहते हैं मैं अपने इस रिश्तेदार को गिफ्ट कर रहा हूं और सामने वाला कहता है कि मैं इस रिश्तेदार से गिफ्ट ले रहा हूं।
इसके बाद दुकान के मालिक का प्रूफ देना पड़ता है कि उसने यह प्रॉपर्टी जिस साल में खरीदी होगी और जिससे खरीदी होगी उसका एक दस्तावेज देना होगा। अगर उस व्यक्ति ने भी रिसेल में खरीदा है तो उसकी भी जानकारी देनी होती है।और अगर मूल बिल्डर से खरीदा है तो उसका भी दस्तावेज देना होता है। इसका मतलब उस प्रॉपर्टी का जितना भी दस्तावेज होगा वह सब जमा करना होगा इसके अलावा सिटी सर्वे की लेटेस्ट कॉपी देनी होगी। अगर सिटी सर्वे में प्रॉपर्टी बेचने वाले का नाम नहीं आता तो एफिडेविट में उसके कारण का भी उल्लेख करना होगा। सूरत में से 70% प्रॉपर्टी है जिसमें सिटी सर्वे में ओनर का नाम नहीं होता।
इसके बाद वेरा बिल भी जमा करना होता है। अगर वेरा बिल में टेनेंट का नाम होता है तो उससे भी एक लेटर लिखवाया जाता है कि उसे कोई आपत्ति नहीं है कि यह प्रॉपर्टी किसी और को वह गिफ्ट कर रहा है।
किन अधिकारियों के पास से मिल जाता है लेटर
अगर अंतर धार्मिक या गिफ्ट है तो:
अगर प्रॉपर्टी कोई हिंदू किसी हिंदू को दे रहा है या यह गिफ्ट है तो ऐसे मामले में कलेक्टर ऑफिस में बैठे सिटी प्रांत अधिकारी को एप्लीकेशन देनी होती है। यह अधिकारी एडिशनल कलेक्टर के बराबर होता है। इस मामले में सिटी प्रांत ही आर्डर करता है।
प्रॉपर्टी ट्रांसफर दूसरे धर्म को करना है तो:
अगर कोई हिंदू मुसलमान या सिख को प्रॉपर्टी ट्रांसफर करना चाह रहा है तो सबसे पहले सिटी प्रांत अधिकारी को एप्लीकेशन देनी होती है। इसके बाद इस एप्लीकेशन की एक कॉपी स्थानीय पुलिस चौकी में जाती है जिस इलाके की वह प्रॉपर्टी होती है। इसके अलावा एक कॉपी वहां के मामलतदार के पास जाती है।
इसके बाद पुलिस चौकी में खरीददार, विक्रेता और आसपास के तीन गवाह को बुलाया जाता है। यह पांचो अपना जवाब वहां लिखवाते हैं। इसके बाद इस रिपोर्ट को पुलिस स्टेशन भेजा जाता है जहां से पुलिस आयुक्त के ऑफिस जाती है। फिर यहां से रिपोर्ट सिटी प्रांत ऑफिस भेजा जाता है।
इसके बाद फिर मामलतदार के ऑफिस में खरीददार, विक्रेता और आसपास के तीन गवाह को बुलाया जाता है। वहां पर भी इसी तरह का प्रोसेस किया जाता है और रिपोर्ट सिटी प्रांत ऑफिस भेजी जाती है।
जब दोनों तरफ से रिपोर्ट अगर पॉजिटिव होती है तो सिटी प्रांत अधिकारी प्रॉपर्टी ट्रांसफर की अनुमति दे देता है।
प्रोसेस में भी लगता है
अगर प्रॉपर्टी अंतर धार्मिक या गिफ्ट वाली होती है तो इसमें 1 महीने से सवा महीने के भीतर ट्रांसफर कर दिया जाता। लेकिन अगर प्रॉपर्टी अन्य धर्म को बेची जाती है या ट्रांसफर की जाती है तो उस मामले में यह सारा प्रोसेस होते होते 3 से 4 महीने का समय लग जाता है।
अंतर धार्मिक में अशांत धारा पैसे और वक्त की बर्बादी
इस बारे में बात करते हुए अधिवक्ता अरुण लोहाटी ने बताया कि अंतर धार्मिक मामले में मान लीजिए कि 100 अर्जियां की जाती है। इस बारे में अगर सवाल पूछा जाए कि कितनों का ऑर्डर आएगा तो सामने से यही जवाब मिलेगा कि 100 अर्जियों पर 100 आर्डर हो चुके हैं। तो सवाल यही है कि सभी में अगर ऑर्डर करना ही है तो अशांत धारा लगाना ही क्यों है। इसमें 1 महीने तक का समय में बढ़ जाता है। इसके अलावा एडवोकेट अप्वॉइंट करना एफिडेविट करना नोटरी कराना और कई अन्य खर्चे भी जुड़ जाते हैं।
24 से 30 मोजे गांव को इसके अंतर्गत लिया
अशांत धारा अब तक मजूरा गेट से दिल्ली गेट होते हुए भागल चौक बाजार तक सीमित था लेकिन अब अप्रैल 2021 से उधना, लिंबायत, अडाजन, मजूरा, अंजना समेत 24 30 मौजे गांव तक बढ़ा दिया गया है।