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सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की शहादत वाला बिकरु मतदान को तैयार

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Posted On:Wednesday, April 14, 2021

अजय सिंह
 
— विकास के रहते विकास से मरहूम रहे बिकरु सहित आधा दर्जन गांव
 
कानपुर, 14 अप्रैल । देश को ब्रिटिश शासन से आजादी जरूर 1947 में मिल गई थी, लेकिन कानपुर नगर जनपद का बिकरु गांव ऐसा रहा जहां पर पिछले 25 वर्षों से ग्राम पंचायत चुनाव में लोग या तो मतदान नहीं कर पाते थे या  किसी के फरमान पर वोट डालने को मजबूर होते थे। वह फरमान होता था कुख्यात अपराधी विकास दुबे का जो पिछले वर्ष 10 जुलाई को पुलिस की गोली से मारा गया था। हालांकि पुलिस की गोली का शिकार होने से पहले उसने साथियों संग सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर शहीद कर दिया था। इन्ही पुलिसकर्मियों की शहादत को याद कर अब ग्रामीण गुरुवार को मतदान करने को तैयार हैं। 
 
कानपुर के शिवराजपुर विकास खण्ड क्षेत्र में आने वाले गांव बिकरु में पिछले 25 वर्षों से ऐसा नहीं हो पा रहा था, क्योंकि इस गांव में कुख्यात अपराधी विकास दुबे रहता था। नाम तो उसका विकास था, लेकिन उसके चलते बिकरु सहित आधा दर्जन से अधिक ग्राम पंचायतें और प्रभाव क्षेत्र में आने वाली दो जिला पंचायत सदस्य सीट विकास से मरहमू रहीं। पिछले वर्ष 10 जुलाई को विकास दुबे के साम्राज्य के खात्मे के बाद पहली बार हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों को याद कर मतदाता विकास कार्यों के लिए मतदान करने को तैयार है। 
 
 
ग्राम पंचायत बिकरु के प्रेम ने बताया कि इसके पहले 1995 से लेकर 2015 तक विकास दुबे के कहने पर ही प्रधान चुने जाते थे। प्रधान पद की एक उम्मीदवार मधु के पति विजय कुमार ने बताया कि पहली बार निर्भीक होकर उम्मीदवार प्रचार कर रहे हैं। इसके पहले विकास दुबे के रहते निर्विरोध उसी के आदमी प्रधान बनते थे। गफूर ने बताया कि विकास दुबे के डर से कोई चुनाव लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता था और या तो विकास दुबे के परिवार के लोग या उसी के आदमी प्रधान बनते आ रहे हैं। राजाराम ने बताया कि इस बार 10 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।  
 
घटना के आठ दिन बाद मारा गया था विकास दुबे
 
शिवराजपुर विकास खण्ड का बिकरु गांव पिछले वर्ष दो जुलाई की रात्रि देश में चर्चा का विषय बन गया, क्योंकि यहां पर दबिश देने गई पुलिस टीम पर गांव के कुख्यात अपराधी विकास दुबे ने साथियों संग हमला कर दिया था। हमले में सीओ देवेन्द्र मिश्रा, थानाध्यक्ष महेश चन्द्र यादव स​मेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे। इसके बाद अलग—अलग दिनों में विकास दुबे और उसके पांच अन्य साथी पुलिस की गोली के शिकार हुए। 
 
विकास की बोलती थी तूती
 
बिकरु गांव में पुलिस एनकाउंटर में मारा गया अपराधी विकास दुबे की मर्जी के बिना गांव में पंचायत चुनाव लड़ने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। विकास दुबे खुद तो निर्विरोध चुनाव जीता ही, दो बार भाई की पत्नी व नौकर की पत्नी तथा करीबी को निर्विरोध प्रधान बनवाया । इस बार के चुनाव में बिकरु गांव की कुछ अलग ही तस्वीर दिखाई पड़ रही है, जहां कभी विकास दुबे के खिलाफ खड़े होने की कोई हिम्मत नहीं कर पाता था आज उन्हीं प्रधान की सीटों से 10 दावेदार प्रधान पद के लिए नामांकन कर वोट मांग रहे हैं। इस बार प्रधान पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
 
1995 में पहली बार प्रधान बना विकास
 
बिकरु ग्राम पंचायत में 1995 में विकास दुबे पहली बार ग्राम प्रधान बना था। इसके बाद 2000 में उसने अपने नौकर की पत्नी गायत्री देवी को बिकरु ग्राम पंचायत से ग्राम प्रधान बनवाया। 2005 में उसने अपने भाई की बीवी अंजली दुबे को गांव का ग्राम प्रधान बनवाया। इसी तरह 2010 में विकास दुबे का नौकर रामनरेश कुशवाहा, तो 2015 में फिर अंजली दुबे ग्राम प्रधान बनी। बिकरु गांव से सटे हुए भीटी ग्राम पंचायत में  भी 2005 में बिकास दुबे ने अपने छोटे भाई अविनाश दुबे को ग्राम प्रधान बनवाया था, जिसकी मृत्यु ह्ये जाने के वाद विकास दुबे ने अपने सिपहसालार जिलेदार यादव के बेटे को ग्राम पंचायत का ग्राम प्रधान बनवाया। पड़ोसी गांव बसेन ग्राम पंचायत से भी  विकास दुबे ने अपने भांजे आशुतोष को ग्राम प्रधान बनवा लिया। अगली बार सीट आरक्षित हो जाने पर आशुतोष तिवारी का नौकर वसेन गांव से ग्राम प्रधान बना। इसके अलावा 25 वर्षों तक जिला पंचायत घिमऊ सीट पर भी कायम विकास दुबे का आतंक इस बार खत्म हो गया है। 
 
इन ग्राम पंचायतों में था दबदबा
 
विकास दुबे का बिकरु, भीटी, सुजजा निवादा, डिव्वा निवादा, काशीराम निवादा, वसेन सहित आसपास के एक दर्जन ग्राम पंचायतों में दबदवा रहता था। इन ग्राम पंचायतों में विकास दुबे की मर्जी के खिलाफ कोई भी जिला पंचायत प्रत्याशी गांव में प्रवेश नहीं करता था और अगर गांव में पहुंच भी गया तो गैंगस्टर विकास दुबे का इतना आतंक था कि किसी भी प्रत्याशी से ग्रामीण बात नहीं करते थे। ऐसे में प्रत्याशी को उल्टे पैर वापस होना पड़ता था। आज चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी जहां स्वतंत्र होकर वोट मांगते घूम रहे हैं, वहीं मतदाता भी अपनी इच्छा अनुसार मतदान करने को स्वतंत्र दिखाई पड़ रहे हैं। आज खुलकर चौराहों पर बैठे लोग राजनीतिक बातें करते हुए दिख रहे हैं।


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