वाराणसी। तीज-त्योहारों की कड़ी में रक्षा बंधन के तीसरे दिन भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज पर्व मनाया जाता है। इस बार तीज पर्व 25 अगस्त को मनाया जाएगा। हर साल तीज के दिन सुहागिनें सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव-पार्वती की पूजा करके पति की लंबी आयु, खुशहाली की कामना करती हैं।
शाम को खाएंगी जलेबा, रात को गाएंगी कजरी:-
कजरी तीज का व्रत रखने की पूर्व संध्या पर सुहागिनें जलेबा खाएंगी। इसके बाद रतजग्गा करेंगी। इस दौरान वह कजरी गाएंगी। ढोलक-झाल संग महिलाएं एकजुट होकर पूरी रात नृत्य-संगीत करती हैं। फिर अगले दिन सुबह व्रत रखती हैं।
गीत जो गाती है शुहागन:-
"सईयां बसे जाइ परदेसवा, सनेसवा त नाहीं अइलें सजनी, सखियां.। सईयां के करनवां बनली जोगिनिया। अपना ही घरवां में भइली बेगनियां.."
"सुनो मोरे सइयाँ, कहली कई दैयाँ, हम नइहरवा जइबे ना
अब तो आ गइलैं सवनवाँ, हम नइहरवा जइबै ना"
कजरी तीज की कथा:-
कथा के अनुसार एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी हालत ऐसी थी कि दो समय के भोजन करने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। ऐसे में एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखने का संकल्प लिया और अपने पति से व्रत के लिए चने का सत्तू लाने को कहा। यह बात सुनकर ब्राह्मण परेशान हो गया कि आखिर उसके पास इतने पैसे तो है नहीं, फिर वह सत्तू कहां से लेकर आए।
बहरहाल, ब्राह्मण साहुकार की दुकान पर पहुंचा। वहां उसने देखा कि साहुकार सो रहा था। ऐसे में ब्राह्मण चुपके से दुकान में चला गया सत्तू लाने लगा। इतने में साहुकार की नींद खुल गई और उसने ब्राह्मण को देख लिया। उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया और चोर-चोर चिल्लाने लगा। ब्राह्मण ने तब कहा कि वह चोर नहीं है और केवल सवा किलो सत्तू लेकर जा रहा है।
ब्राह्मण ने बताया कि उसकी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत किया है और उसके लिए पूजा सामाग्री चाहिए। इसलिए उसने केवल सत्तू लिया है। यह सुनकर साहुकार ने ब्राह्मण की तालाशी ली तो उसके पास सही में कुछ नहीं मिला। यह देख साहुकार की आंखें नम हो गई। उसने ब्राह्मण से कहा कि अब से वह उसकी पत्नी को बहन मानेगा। इसके बाद साहुकार ने ब्राह्मण को पैसे और सामान देकर विदा किया। कहते हैं कि इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और पति की आयु लंबी होती है।
खोती जा रही परंपरा:-
पूर्वांचल के मिर्जापुर, वाराणसी समेत जौनपुर की कजरी प्रदेश में विख्यात रही है। लेकिन आज समाज जिस तरह से पाश्चात्य संस्कृति की तरफ भाग रहा है। उससे अपनी संस्कृति और पहचान को भूलता जा रहा है। आधुनिकता के दौड़ में वह सब कुछ इतिहास के पन्नों की बात हो गयी है। सावन मास शुरू होने के साथ ही कजरी लोक गीत की शुरुआत हो जाती है। सावन भादों तक इस लोक गीत के लिए दंगल का आयोजन कर जन मानस आनन्द उठाते हैं।
रिपार्ट-सुदीप राज