वाराणसी। देवों के देव महादेव की अति प्रिय काशी और उनका अति प्रिय माह, सावन समाप्ति की ओर है, ऐसे में सोमवार को बाबा के जलाभिषेक के लिए भारी मात्रा में श्रद्धालु भिन्न-भिन्न स्थानों पर उमड़ रहे हैं। काशी में महादेव महादेव के विराजमान अनेकों शिव मंदिरों में एक ऐसा शिव मंदिर उपस्थित है जहां महादेव का शिवलिंग प्रतिदिन एक-एक करके बढ़ता जाता है यह बात सिर्फ लोगों में मिथ्या नहीं बल्कि शास्त्रों में प्रमाणित सत्य है। वाराणसी ही नहीं बल्कि पूरे देश से विदेश तक यह शिव मंदिर एक आश्चर्य का विषय है, हर कोई यह जानने को उत्सुक होता है कि कोई निर्जीव पत्थर आखिर कैसे अपना स्वरूप प्रतिदिन विस्तृत करता जाता है। अपने इस रिपोर्ट में हम जानेंगे वाराणसी में स्थित तिलभांडेश्वर महादेव के पौराणिक महत्व समेत कुछ आश्चर्यजनक तथ्यों के विषय में।
चमत्कारी है यह शिवलिंग:-
वाराणसी में गंगा के समीप मदनपुरा इलाके में स्थित तिलभांडेश्वर मंदिर के महंत जी से हुई हमारी खास बातचीत में उन्होंने बताया कि द्वापर युग से स्थापित तिलभांडेश्वर महादेव का वर्णन शिवपुराण में किया गया है। जिसमें कहा गया है कि दक्षिण भारत से आए विभंडक ऋषि, आनंदवन कहे जाने वाले काशी में तप करने के उद्देश्य से आए थें और मंदिर परिसर के ही निकट बैठकर योग साधना में लग गए।यहां के ग्रामीण निवासियों से उन्होंने कहा कि इस स्थान पर शिवजी का स्वरूप एक शिवलिंग मौजूद है जिसमें कुछ चमत्कारी शक्तियां है। शुरू में जनमानस ने उनके इस बात को मजाक में लिया पर ऋषि के जोर देने पर लोगों ने खुदाई कर सत्य की तलाश करने लगे। खुदाई के बाद जब लोगों ने बाबा के शिवलिंग को देखा तो वह सच में आश्चर्यचकित रह गए।
चूंकि विभांडक ऋषि इस स्थल पर लगातार तप करते रहतें थें तो लोगों ने उनसे ही बाबा के पूजन अर्चन की विधि पूछी।पूजा विधि बताते हुए ऋषि ने कहा कि धूप नवैद्य आदि के साथ साथ बाबा को प्रतिदिन एक तिल चढ़ाना है और जल के साथ-साथ बाबा का तिल से अभिषेक करते रहना है। ब्रह्म काल में स्नान आदि करके संपूर्ण विधि के साथ बाबा का दर्शन करने वह अभिषेक करने से मनुष्य के ऊपर चल रहे सभी प्रकार के नक्षत्र दोष समाप्त हो जाते हैं और मृत्यु पश्चात वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
मिथ्या नहीं सत्य है शिवलिंग का बढ़ता स्वरुप:-
हमसे हुई खास बातचीत में दशकों से मंदिर में सेवा करते आ रहे मंदिर के महंत जी ने बताया कि यह तिलभांडेश्वर मंदिर अनादि काल से बढ़ने वाला स्वयंभू शिवलिंग है जो द्वापर युग से प्रतिदिन एक-एक तिल करके बढ़ता आ रहा है।मंदिर के महंत जी ने दावे के साथ यह बात कही कि कि वह स्वयं इस बात के साक्ष्य हैं कि बाबा का यह स्वरूप तिल तिल कर के नित दिन बढ़ता है। इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने कई प्रयोग भी किए। एक बार शिवलिंग पर नारा भी बांधा गया, पर कुछ ही दिनों में जब देखा गया तो वह नारा टूट चुका था, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि शिवलिंग दिन प्रतिदिन अपने आकार में विस्तृत होता जा रहा है। यही नहीं अन्नपूर्णा श्रृंगार हेतु बाबा के चारों तरफ धातु की रिंग लगाई जाती है जिसके सहारे श्रृंगार किए जाते हैं। बाबा के बढ़ते स्वरूप के कारण छल्ले का आकार भी नित वर्ष बड़ा करना पड़ता है।
गौरतलब बात यह है कि जनमानस की आस्था ने तो इस बात को स्वीकार कर लिया कि बाबा का यह स्वरूप निर्जीव पत्थर होने के बावजूद भी लगातार बढ़ रहा है तो वहीं इस पर तर्क वितर्क करता हुआ विज्ञान भी कई बार धर्म और आस्था के आगे नतमस्तक होते हुए इस बात को प्रमाणित करता आया है।