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वाराणसी में धूमधाम से मनाया जा रहा नाग पंचमी का पर्व, जाने क्या है महत्व, और पूजा विधि।

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Posted On:Friday, August 13, 2021

वाराणसी। जिले में आज नाग पंचमी यानी नागों के उत्पति का दिन हर बार की भांति पूरे रीति रिवाज के साथ मनाया जा रहा है।  सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागवंश का उदय हुआ था, मान्यता हैं की नागपंचमी के दिन नाग देवता के दर्शन करने से काल सर्प योग दूर होता हैं। 
कैसे होती है नाग देवता की पूजा:-
नागपंचमी के दिन पौ फटने के साथ नर नारी पूजा का थाल ले कूप पर जाकर दूध घी और नव्वैद्य अर्पण कर, परिवार को सर्प भय के साथ परिवार के उतम स्वास्थ्य की कामना करती हैं। घरों के मुख्य द्वार तथा अन्य कमरों के द्वारों पर नाग देवता के चित्र लगाए जाते हैं क्षेत्रों में भगवान शंकर व नाग देवता का टीका चंदन कर भोग लगाया जाता है साथ ही साथ घर के आंगन व कमरों के कोनों में नाग देवता को दूध और लावे का भोग अर्पित किया जाता है। मान्यताओ के आनुसार ऐसा करने से घर में साप नहीं आते साथ ही इनका भय नहीं होता।
 
ऐसा कुआं जहां आज भी होता है नागों का निवास:-
धर्म की नगरी काशी  के जैतपुरा के नवापुरा क्षेत्र में एक ऐसा कुआ है जहाँ आज भी  नागो का निवास है इस कुए का वर्णन तमाम धर्म शास्त्रों में वर्णित है। जिनके अनुसार इस कूप के दर्शन से नाग दंश भय के साथ ही काल सर्प योग से भी राहत होता है। अपने इसी पौराणिक महत्व के कारण इस कुंड का नाम नागकूप है। नागपंचमी आने वाली हैं इसलिए श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए यहां नागपंचमी की तैयारियां जोरो पर हैं। जहा दर्शन मात्र से सभी पापो की मुक्ति होती हैं।

हर भक्त इस कूप में दूध चढ़ाने को आतुर होता हैं, तो कोई दूध चढाकर नागदेवता को प्रशन्न करता हैं।  हर कोई इस कुंड के पानी में अपने पापों व काल सर्प दोष की मुक्ति के लिए नागपंचमी के दिन यहाँ सुबह से ही पूजा पाठ करते  हैं। वैसे तो मंदिर साल भर खुला रहता हैं लेकिन नागपंचमी के दिन इस मंदिर में दर्शन करने से सभी पापो का शमन होता हैं और कालसर्प दोष से भी  मुक्ति मिलती हैं। इसी आशय से भक्त नागपंचमी के दिन यहां  भक्त  इक्कठा होते हैं और इस कुंड में रहने वाले सापों को दूध चढाते हैं।
 
आचार्य जी ने बताया इस पर्व का महत्व :-
BanarasVocals की टीम से बात करते हुए  नागकुआँ पुजारी, आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया कि करकोटक नाग तीर्थ के नाम से जाने जाने बाले इसी जगह पर शेषावतार (नागवंश) के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी  के भाष्य की रचना की थी। मान्यता यह भी है की इस कूप का रास्ता सीधे नाग लोक को जाता है। इस कूप की सबसे बड़ी महत्ता ये हैं की इस कूप में स्नान व् पूजा मात्र से ही सारे पापो का नष्ट हो जाता हैं व् इस कूप में स्नान मात्र से जिनके कुंडली में राहु केतु बीच में सारे गृह आ जाते हैं जिससे नाग दोष लग जाता हैं जिसे कालसर्प दोष कहा जाता हैं। यही दोष पर नागपंचमी के दिन इस कुंड में स्नान मात्र से दूर हो जातें हैं। पूरे विश्व में काल सर्प दोष की सिर्फ तीन जगह ही काल सर्प दोष की पूजा होती हैं। उसमे से ये कुंड प्रधान कुंड हैं। ये कुआ लगभग तीन हजार पुराना स्थान हैं जो तपस्या का स्थल है जो आज जीवंत रूप में सभी के सामने हैं।  


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