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अस्सी से राजघाट तक गंगा में फिर आए शैवाल

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Posted On:Thursday, June 3, 2021

वाराणसी, 3 जून 2021 | गंगा में अस्सी से राजघाट तक हरे शैवाल फिर जमा हो गए हैं। शैवालों के कारण गंगा का इकोसिस्टम एक बार फिर संकट में आ गया है। गंगा में हरे शैवाल की मौजूदगी ने नदी विज्ञानियों और प्रदूषण नियंत्रण विभाग की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अधिकारियों का कहना है कि पिछली बार मिर्जापुर के पास से लोहिया नदी से ये शैवाल गंगा में आए थे, इस बार ये प्रयागराज से पहुंच रहे हैं।
 
गंगा में हरे शैवाल की मात्रा पिछले 24 घंटे में अचानक बढ़ गई है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग और नमामि गंगे की ओर से घाट के किनारे रहने वाले मल्लाहों और स्थानीय लोगों को जागरूक किया जा रहा है। बीएचयू के वैज्ञानिकों ने पूर्व में आशंका जताई थी कि हरे शैवाल फिर से गंगा में आ सकते हैं। हरे शैवालों के कारण गंगा में ऑक्सीजन स्तर कम होता जा रहा है। यह गंगा में पलने वाले जीवों के लिए बड़ा संकट है। बीते सप्ताह हरे शैवाल आने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे अस्थायी समस्या बताकर जल्द ही स्थिति सामान्य होने की बात कही थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्राथमिक जांच में भी यह बात सामने आई थी कि गंगाजल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा निर्धारित मानकों से ज्यादा हो गई है।
 
25 डिग्री से ज्यादरा तापमान में पनपते हैं शैवाल
नदी विज्ञानी प्रो. बीडी त्रिपाठी के अनुसार जब जल के अंदर का तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है तब शैवाल के पनपने के अनुकूल वातावरण बन जाता है। बीते सप्ताह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में रामनगर की ओर गंगा जल के भीतर का तापमान 35 डिग्री के आसपास मिला था। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि जल्द ही इस समस्या का स्थायी हल नहीं खोजा गया तो गंगा का इकोसिस्टम प्रभावित होगा और जलचरों के जीवन पर संकट खड़ा हो जाएगा। सबसे पहले छोटे आकार वाले जीवों के जीवन पर संकट होगा।
 
गैर जरूरी जीवों की संख्या में होती है अप्रत्याशित वृद्धि
बीएचयू में इंस्टीट्यूट आफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ. कृपाराम ने बताया कि जल में युट्रोफिकेशन प्रक्रिया होने से एल्गी ब्लूम (हरे शैवाल) बनते हैं। ऐसा तब होता है जब जल में न्यूट्रिएंट काफी बढ़ जाते हैं। इस कारण गैर जरूरी स्वस्थ जीवों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है। ऐसे में शैवालों को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है। तब पानी में ऑक्सीजन कम होने लगता है, जिससे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सबसे पहले प्रभावित होती है।


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