वाराणसी। सदियों पहले बन्द हो चुकी "पवित्र असि नदी परिक्रमा यात्रा रविवार को शुरू हुई।असि-गंगा संगम तट (संत रविदास घाट) पर पूजन-अर्चन के बाद इस यात्रा की शुरुआत हुई। यात्रियों के एक विशिष्ट दल ने काशी विश्वनाथ और असि गंगा के नामों का जयघोष करते हुए यात्रा शुरू की।
विशुद्ध धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये की जाने वाली ये यात्रा कई मायने में महत्वपूर्ण है, जिसमें नदी संस्कृति का संरक्षण, प्राचीन यात्राओं का प्रचार-प्रसार और काशी को उसके मौलिक स्वरुप के अनुसार विकसित करने की कवायद को स्थापित करना हो सकता है।नवरात्रि में इस विशिष्ट यात्रा को शुरू करने के बारे में पूछने पर नदी कार्यकर्ता कपिंद्र तिवारी ने बताया कि "पुराणों में असि नदी के महात्म से जुड़ी ढेरों कथाएं शामिल हैं, जिसमें शुम्भ-निशुंभ के वध के बाद माँ भगवती ने अपना कटार फेंकने और उससे एक पवित्र जल धारा फूट पड़ने की कथा भी शामिल है। इसलिये ये यात्रा नवरात्रि में होती रही है, जिससे माँ भगवती की कृपा प्राप्त हो सके।
नदी परिक्रमा पथ ना जाने कब के गायब हो चुके हैं। कहीं कहीं तो इसके उपर से ही पाट कर भवन निर्माण कर लिये गये हैं। विकास की आंधी और आधुनिकता का नशा समाज पर इस कदर छाया हुआ है, कि वो सब कुछ रौद कर आगे बढ़ जाना चाहता है, कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है जब हम असि नदी परिक्रमा पथ पर चल रहे होते हैं।
यह यात्रा करौदी, आदित्य नगर, चितईपुर, कन्दवा होते हुए वापस कंचनपुर, इंद्रानगर, नेवादा, सुन्दरपुर, ब्रम्हानन्द, रवीद्रपूरी असि-संगमेश्वर का दर्शन-पूजन कर असि घाट पर पूरी हुई। यात्री दल में स्वामी सर्वानांद सरस्वती, नमामि गंगे के संयोजक राजेश शुक्ला, सीइएसआर के निदेशक और नदी कार्यकर्ता कपिन्द्र तिवारी, मोहन पटेल, शिवेन्द्र, जागृति फाऊंडेशन के रामयश मिश्र, समाजिक कार्यकर्ता और भारत विकास परिषद के राकेश मौर्य,वानप्रस्थ समाजिक संस्था के राकेश मिढ्ढ़ा, भारत विकास संगम, संजय शुक्ला, वसुदेवाचार्य, राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के बृजेश सिंह, समाजिक कार्यकर्ता सन्तोष बिहारी, जयराम शरण व अन्य दर्जनों लोग शामिल रहे।