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संस्कृति और कला की नगरी काशी से अटल जी का रहा है गहरा नाता।

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Posted On:Saturday, December 25, 2021

वाराणसी। काशी अपने धार्मिक स्थलों के लिए विश्वभर में  लोकप्रिय  है, यह भूमि इतनी पावन है की इसका कई महापुरूषो से नाता रहा है। जहां 25  दिसम्बर को हर साल विश्वभर में क्रिसमस की रौनक होती है, वहीँ दूसरी ओर भारत के लिए यह दिन कुछ खास महत्व रखता है। आज ही के दिन भारत के पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी का 1924 में  जन्म हुआ था। भारत भूमि में जन्मे हमारे राष्ट्र और संस्कृति के पहचान, अटल बिहारी वाजपेयी जी ने वाराणसी से ही पत्रकारिता शुरू की थी।  यहीं वे  सम्पादक के रूप में  अग्रसर रहे। इसीलिए काशी से उनका  खास नाता रहा।  बात उस समय की है जब वे अंग्रेजी शासन के दौरान "आज " नामक अखबार में वह संपादक के पद पर थे। उसी समय "समाचार " नामक वाराणसी का अखबार भी लोप्रिय था जिसमे अटल बिहारी वाजपेयी, नाना जी देशमुख और बाला साहब देवरस जैसे लोग लिखा करते थे। 

वाजपेयी जी भारत के सर्वप्रसिद्ध नेता और दार्शनिक थे, यह कुछ ही लोगो को पता है कि वे  एक अच्छे कवी भी थे। वाराणसी में "आज " नामक अखबार के साहित्य सम्पादक  स्व. मोहन लाल गुप्ता जी अक्सर अटल बिहारी जी की लिखी कविता प्रकाशित किया करते थे। काशी का यह सौभाग्य ही है जो अटल जी जैसे महान व्यक्ति यहां के प्रसिद्ध  काव्य सम्मेलन में न केवल शामिल होते थे, बल्कि अपनी लिखी कविताओं का बड़े शिद्दत और रूहानियत के साथ काव्य पाठ भी करते थे। काशी की ऐसी गोष्ठिओं में शामिल होके उन्होंने न ही माँ गंगा से आशीर्वाद लिया है, बल्कि काशी वासिओं के दिल में एक अनूठी जगह बनाई है। बाजपेयी जी का बनारस की कला और उसके कलाकारों के प्रति प्रेम कुछ इस तरह था की 2001  में अटल जी की नेतृत्व की सरकार में ही काशी के लोकप्रिय शहनाईवादक उस्वाद बिस्मिल्ला खां को भारत रत्न से और किशन महाराज को पद्मविभूषण से नवाज़ा गया।  

 प्रधानमंत्री  के पद पर कार्यरत रहते हुए उनका काशी  प्रेम कभी कम नहीं रहा। यही वजह है की  उनके नेतृत्व में गंगा स्वछता प्रोजेक्ट सफल रहा। काशी के तट पर समय बिताते हुए उन्होंने गंगा माँ को पूर्ण समर्पण दिया है। यही वजह है की आज भी काशिवासिओ के मन में उनके लिए प्रेम और काशी से अटल जी का गहरा नाता है।


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