वाराणसी, 31 मई। वाराणसी में कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों में संक्रमण की आशंका को देखते हुए शासन-प्रशासन तैयारियों में लगा है कि बच्चों का बेहतर इलाज किया जा सके। तीसरी लहर आने से पहले यहां दूसरी लहर में ही बीएचयू अस्पताल में बच्चों के इलाज में लापरवाही का बड़ा मामला सामने आया है। रविवार को 10 दिन के एक बच्चे को बीएचयू अस्पताल में बेड खाली न होने की बात कह कर उसे मंडलीय अस्पताल रेफर कर दिया गया। ऑटो में ऑक्सीजन सिलिंडर लगाकर परिजन भी बीएचयू से निकलकर मंडलीय अस्पताल भटकते रहे। यहां भी वेंटिलेटर ना होने की बात कहकर मना कर दिया गया। इस तरह की स्थिति तब है जब बीएचयू में ही बच्चों के लिए बने एनआईसीयू, पीआईसीयू में बेड खाली हैं।
मूल रूप से सैदपुर के महमूदपुर निवासी शशिभूषण यादव के बच्चे का जन्म सैदपुर के एक अस्पताल में हुआ। यहां बच्चे को सांस लेने में तकलीफ थी, यहां से डॉक्टर ने वाराणसी महावीर मंदिर स्थित एक निजी अस्पताल में रेफर किया। शशिभूषण के भाई चंद्रभूषण के मुताबिक किसी तरह बच्चे को लेकर महावीर मंदिर के पास डॉक्टर के यहां पहुंचे और वहां भी डॉक्टर ने बीएचयू रेफर कर दिया।
बच्चे को थी सांस लेने में तकलीफ
दस दिन के बच्चे को सांस लेने में तकलीफ थी और हालत गंभीर होता देख परिजन बीएचयू अस्पताल की इमरजेंसी पहुंचे। यहां रविवार सुबह 11:20 बजे पर्चा बना और डॉक्टरों ने इमरजेंसी में देखा, कुछ दवाइयां लिखीं। करीब आधे घंटे बाद बीएचयू में बेड न होने की बात कहकर कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल रेफर कर दिया। पहले तो परिजन कुछ समझ नहीं पाए कि आखिर बीएचयू से कबीरचौरा रेफर किया जा रहा है। लेकिन बच्चे की तबीयत भी बिगड़ती जा रही थी तो आनन-फानन ऑटो में ही ऑक्सीजन सिलिंडर लगाकर मंडलीय अस्पताल गए। बात तो यह कि बीएचयू अस्पताल से ही उसको ऑक्सीजन सिलिंडर भी मिला।
मंडलीय अस्पताल में भी नही मिला वेंटिलेटर
बीएचयू अस्पताल से बच्चे को लेकर परिजन मंडलीय अस्पताल गए तो यहां भी इमरजेंसी में डॉक्टरों ने वेंटिलेटर ना होने की बात कही और उसे दूसरे अस्पताल ले जाने को कहा। हालांकि तीसरी लहर को देखते हुए ही कुछ दिन पहले ही पीएम केयर फंड से ही मंडलीय अस्पताल में वेंटिलेटर आए थे और लगांया भी। अब क्यों नहीं बच्चे को वेंटिलेटर मिला यह भी समझ से परे है।
एमएस को मिली जानकारी तो मचा हड़कंप
बीएचयू अस्पताल में बेड खाली होने के बाद भी दस दिन के बच्चे को मंडलीय अस्पताल रेफर करने की जानकारी एमएस प्रो. केके गुप्ता को मिली तो हड़कंप मच गया। वह भी इस बात को सुनकर चौंके और अपने ऑफिस के माध्यम से इसकी हकीकत पता लगवानी शुरू कर दी। एमएस ऑफिस से गंभीर बच्चों के इलाज के लिए जिम्मेदार लोगों को फोन करना शुरू किया गया तो पता चला कि बच्चों के लिए एनआईसीयू में वेंटिलेटर वाले बेड भी खाली हैं।