वाराणसी। काशी में 1 अप्रैल को होने वाला महामूर्ख मेला मूर्खों अपने बनारसीपन के लिए ही जाना जाता है। वाराणसी के राजेंद्र प्रसाद घाट के खुले मंच पर होने वाले इस आयोजन के इस साल 54वां वर्ष रहा। लोगों को हंसाने के लिए कवियों का जमावड़ा लगा। बनारस के प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि सुदामा तिवारी उर्फ सांड बनारसी की मौजूदगी में बनारस, प्रयागराज, हरोदई, उन्नाव, गाजीपुर से आए कवियों ने समा बांधा।
राजनीतिक वार और धुरंधर हास्य व्यंग की रचनाओं से जब कवियों ने लोगों को गुदगुदाया तो हर कोई ठहाका लगाकर हंस पड़ा। मूर्ख पुरोहित ने गड़बड़ मंत्रों से पुरुष बनी महिला की महिला बने पुरुष से शादी कराई। शादी के बाद ही दुल्हन ने दूल्हे की आदतों पर इतराज जताया और तुंरत तलाक भी हो गया।
दमदार बनारसी ने अपने अंदाज में कहा- 'गंगा में नहाई नित स्वस्थ है बनारसी, मस्ती, मजा मनोरंजन नित्य कर्म पद्धित में मस्त है बनारसी। साधू-संत ऋषिमुनियों की टोली यहां-ठग और उच्चके भी जबरजस्त हैं बनारसी। शिव का नगर शिवगण ही निवास करे-भांग छाने मस्ती में मस्त है बनारसी।'
दमदार बनारसी ने कहा मैं कही जाता हूं और कोई मुझे बनारसी बोल कर संबोधित करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। महामूर्ख मेले में आकर लोगों को हंसाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। बनारसियों को यही संदेश है कि मस्त रहिये। बनारस आनंदवन है, यहां मरना ही मंगलकार्य होता है।