वाराणसी। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, जो की इस वर्ष 25 अगस्त को पड़ी है। आज के दिन माताएं अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जिससे खुश होकर श्री गणेश जी दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित लोकनाथ शास्त्री ने बताया की संकष्टी चतुर्थी के व्रत कथा में चंद्रमा के उदय होने पर विघ्नहर्ता प्रथम आराध्य श्री गणेश जी के साथ चंद्रपूजन करने और अर्घ देने का विधान है। चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी में इस व्रत की पूजा का विधान है।
क्या है पूजन विधि?
व्रती महिलाएं प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर नए कपड़े पहनती हैं। पूरे दिन उपवास रखने के बाद संध्या के समय गणेश जी का विधिवत पूजन करती हैं।
दूध, सुपारी, गंद तथा अक्षत से भगवान श्री गणेश और चतुर्थी तिथि को चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देतीं हैं। नैवेद्य मैं लड्डू, दूर्वा, काला तिल, गुड समेत पंच प्रकार के रितु फल आदि समर्पित करके भगवान गणेश और चंद्रमा से पुत्र की दीर्घायु के साथ सुख समृद्धि की कामना करतीं हैं।
मान्यता है की इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाला सारा कष्ट शीघ्र ही समाप्त हो जाता है और सभी मनोकामनाएं पुरी होती हैं और विघ्नहर्ता गणेश व्यक्ति के जीवन के सभी दुख और संकटों को दूर कर देते हैं ज्योतिष में भी गणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है। इसे संतान की रक्षा का व्रत भी कहा जाता है। इस चंद्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्व है।