वाराणसी। गंगा को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त रखने के एक अन्य प्रयास में उत्तर प्रदेश सरकार नमामि गंगे अभियान के तहत "रिवर रांचिंग" की मदद लेगी। नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार गंगा में 15 लाख मछलियां छोड़ेगी।
मत्स्य पालन विभाग द्वारा विभिन्न प्रजातियों की लगभग 15 लाख मछलियों को नदी में छोड़ने की कार्ययोजना बनाई गई है। यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करेगी, जिससे नदी में जैव विविधता को बनाए रखने और संरक्षित करने में मदद मिलेगी और नमामि गंगे अभियान के तहत इसकी सफाई सुनिश्चित होगी।
वाराणसी में छोड़ी जाएंगी कुल 1.5 लाख मछलियां:-
इन मछलियों को पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक के करीब 12 जिलों गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़, कानपुर, हरदोई, बहराइच, बुलंदशहर, अमरोहा और बिजनौर में छोड़ा जाएगा। वाराणसी और गाजीपुर जिलों से गंगा में लगभग 1.5-1.5 लाख मछलियां छोड़ी जाएंगी।
नदी का 'इकोसिस्टम' रहेगा बरकरार:-
प्रमुख सचिव नमामि गंगे अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि गंगा की स्वच्छता और भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए समग्र प्रयास किए जा रहे हैं, ये भी उसी का एक हिस्सा है। मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एन एस रहमानी ने बताया कि गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरक़रार रखने के लिए "रिवर रांचिंग" प्रोसेस का भी प्रयोग किया जाता है।
20 सालो से लगातार नदियों में घट रहीं हैं मछलियां:-
इस प्रक्रिया में गंगा में अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती है। यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती हैं। ये मछलियां गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती हैं। साथ ही जलीय जंतुओं के लिए भी हितकारी होती हैं। उन्होंने जानकारी दी कि गंगा में अधिक मछली पकड़ने व प्रदूषण से गंगा में मछलियां कम होती जा रही है। 20 सालो से लगातार नदियों में मछलियां घट रही है। जो अब 20 प्रतिशत रह गई है।
हर दिन गंगा में काफी संख्या में गिरता है नाइट्रोजन:-
मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एनएस रहमानी ने जानकारी दी कि 4 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में मौजूद लगभग 15 सौ किलो मछलियां 1 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रोजन वेस्ट को नियंत्रित करती है। इसलिए सरकार ने गंगा में भी लगभग 15 लाख मछलियों को प्रवाहित करने का निर्णय लिया है। हर दिन गंगा में काफी संख्या में नाइट्रोजन गिरता है। यदि नाइट्रोजन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे अधिक हो जाता है तो यह जीवन के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है। इसके बढ़ने से मछलियों की प्रजनन नहीं हो पाती और वह अंडे नहीं दे पाती है। इससे इनकी प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित होती है।
यह मछलियां डाली जाएंगी गंगा में:-
सितंबर के आखिरी माह तक रोहू, कतला व मृगला (नैना) नस्ल की मछलियां गंगा में डाली जाएँगी। इससे गंगा के प्रदूषण को कम किया जा सकेगा। इसके लिए 70 एमएम के बच्चे को भी तैयार किया गया है। खास बात यह है कि यह मछलियों के बच्चे गंगा में रहने वाले मछलियों के ही हैं। क्योंकि यदि मछलियों का प्राकृतिक वातावरण बदलेगा तो इससे उनका जीवन भी प्रभावित होगा। इसलिए पहले गंगा नदी से ही मछलियों को चुनकर के हैचरी में रखा गया, वहां उनका प्रजनन हुआ और 70 एमएम का बच्चा तैयार किया गया।
इस योजना के तहत सरकार की कोशिश है कि मछलियों के जरिए नदियों में प्राकृतिक जनन का कार्य शुरू किया जाए,क्योंकि इससे मछलियां संरक्षित होंगी और मछलियों के बढ़ने से अन्य जलीय जीवों में बढ़ोतरी होगी और प्राकृतिक प्रजनन ज्यादा होगा जिससे नदी का प्रदूषण भी कम होगा।