वाराणस। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है। और इसी दिन घटस्थापना भी करते हैं। जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। जौ बोने के साथ-साथ कई लोग अखंड ज्योति भी जलाते है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। साल भर में चार नवरात्रि पड़ती हैं। लेकिन धूम-धाम से चैत्र और शारदीय नवरात्रि को मनाया जाता है। इस साल शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर यानि कल से शुरू होकर 15 अक्टूबर यानि विजय दशमी के साथ पूरे होंगे।
माना जाता है जो भक्त मां कि भक्ति भाव से आराधना करते हैं, मां दुर्गा 9 दिनों तक उनके घरों में विराजमान रहकर उनपर अपनी कृपा बरसाती हैं। माता रानी के इन नौ दिनों को बहुत ही पवित्र माना जाता है। इन नौ दिनों तक मांस, शराब आदि का सेवन नहीं किया जाता। कई लोग इन नौ दिनों तक प्याज, लहसुन का भी सेवन नहीं करते हैं। माता की आराधना करने के लिए कुछ भक्त नौ दिनों तक भक्ति भाव से व्रत का पालन करते हैं। कुछ भक्त फलाहार व्रत करते हैं तो कुछ निर्जला व्रत। नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक मां भगवती को उनका मनपसंद भोग चढ़ाया जाता है। माता को अलग-अलग तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है.
ऐसा है मां का स्वरूप
मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। मां के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं। इसलिए इनको वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं।
बादाम हलवा का लगाए भोग :
हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. साल भर में चार नवरात्रि पड़ती हैं. लेकिन धूम-धाम से चैत्र और शारदीय नवरात्रि को मनाया जाता है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है. मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप को गाय के घी से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है. आप उन्हें घी से बना हलवे का भोग में लगा सकते हैं. घी का हलवा बनाने के लिए बादाम को छीलकर उसका पेस्ट बनाकर घी में भून लें. ये खाने में स्वादिष्ट और बनाने में काफी आसान है. इसे आप माता को चढ़ाने के बाद व्रत में भी खा सकते हैं.
पूजा सामग्रीः
माता की पूजा में लाल रंग की चुनरी रखें। माना जाता है कि मां दुर्गा को लाल रंग अधिक पसंद है। मां के लिए लाल चुनरी, कुमकुम, मिट्टी का पात्र, जौ, साफ की हुई मिट्टी, जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, लाल सूत्र, मौली, इलाइची, लौंग, कपूर, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, पानी वाला नारियल, फूल माला और नवरात्रि कलश मंगा लें। पूजा के लिए लाल रंग के आसन का इंतजाम कर लें। आसन ना होने पर आप लाल रंग के कपड़े का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
माता शैलपुत्री की इस तरह करें पूजा:
चैत्र नवरात्र के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करें। इसके बाद कलश स्थापना करें और मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद माता को रोली-चावल लगाएं और सफेद फूल मां को चढ़ाएं। फिर सफेद वस्त्र मां को अर्पित करें। मां के सामने धूप, दीप जलाएं और मां की देसी घी के दीपक से आरती उतारें। शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। जयकारों के साथ पूजा संपन्न करें और मां को भोग लगाएं। इसके बाद सायंकाल के समय मां की आरती करें और ध्यान करें।
घटस्थापना का शुभ मुहुर्त :
घटस्थापना यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है, जो लगातार नौ दिन तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। घटस्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल चाहिए। इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सोमवार 12 अप्रैल को प्रातः 8:02 बजे से आरंभ होकर मंगलवार पूर्वाह्न 10:17 बजे तक विद्यमान रहेगी। प्रतिपदा में अमावस्या का कहीं भी स्पर्श नहीं होने के कारण विक्रम संवत् 2078 का प्रवेश और वासन्तिक नवरात्र घटस्थापन 13 अप्रैल सन् 2021 ई. को ही शास्त्र सम्मत रहेगा। घटस्थापन मंदिरों व शक्तिपीठों में मंगलवार तड़के 4:00 बजे से 5:15 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में विशेष शुभ रहेगा। देवी के विशेष रूप से बनाए गए मंडपों और घरों में प्रातः 9:00 बजे से 10:27 बजे तक वृष लग्न में भी नवरात्रा घटस्थापन उत्तम रहेगा।
मां शैलपुत्री मंत्रः
माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है। इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन से लेकर अंतिम नवे दिन तक हर रोज घर में कपूर जलाना चाहिए और उससे ही पूजा करनी चाहिए। मां शैलपुत्री का मंत्र इस प्रकार है... वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।। पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥ पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता । प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम् । कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥ या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नमः।
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