वाराणसी। 7 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गए हैं। इस बार नवरात्रि 8 ही दिनों की है। तृतीया और चतुर्थ नवरात्रि एक ही दिन यानी 9 अक्टूबर को है। आज 9 अकटूबर को सुबह 7 बजकर 38 मिनट तक तृतीया तिथि है उसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। तृतीया तिथि पर मां के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा और चतुर्थी तिथि पर मां के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्माण्डा की पूजा- अर्चना की जाती है।
काशी में माँ चंद्रघंटा का मन्दिर चौक क्षेत्र में स्थित हैं। जहाँ मां अपने दिव्य स्वरूप के साथ विराजती है। माँ के इस स्वरूप में गले में चन्द्रमा है। कहा जाता है कि माता के घण्टे की आवाज सुनकर असुरों में भय का माहौल व्याप्त हो जाता हैं। इसलिए जब असुरो के बढ़ते प्रभाव से देवता त्रस्त हो गए तो असुरो का नाश करने के लिए देवी माँ चन्द्र घंटा के रूप में अवतरित हुई और असुरो का संहार कर माँ ने देवताओं के संकट को दूर दिया।
ऐसी भी मान्यता है कि माता के दर्शन पूजन से सभी कष्ट दूर होते है। इसी मान्यता के अनुसार आज यहाँ नवरात्रि के तीसरे दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। सभी ने कतारबद्ध होकर माता को चढ़ावा स्वरूप यहाँ लाल चुनरी, फूल माला नारियल चढ़ाकर अपने कष्टों को दूर करने की कामना की।
मां चंद्रघंटा को दूध से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है, मां को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।
ये है मंत्र:-
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
कैसा होता है माँ चंद्रघंटा का स्वरूप:-
माता का तीसरा रूप मां चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं। दसों हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं। माथे पर बना आधा चांद इनकी पहचान है। इस अर्ध चांद की वजह के इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।
मां चंद्रघंटा की कथा:-
बहुत समय पहले जब असुरों का आतंक बढ़ गया था, तब उन्हें सबक सिखाने के लिए मां दुर्गा ने अपने तीसरे स्वरूप में अवतार लिया था। दैत्यों का राजा महिषासुर राजा इंद्र का सिंहासन हड़पना चाहता था जिसके लिए दैत्यों की सेना और देवताओं के बीच में युद्ध छिड़ गई थी। वह स्वर्ग लोक पर अपना राज कायम करना चाहता था जिसके वजह से सभी देवता परेशान थे। सभी देवता अपनी परेशानी लेकर त्रिदेवों के पास गए।
माँ कुष्मांडा की भी होगी पूजा:-
मां के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा- अर्चना आज होगी। जो भक्त कुष्मांडा की उपासना करते हैं, उनके समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। आपको बता दें, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता कूष्मांडा ने ही ब्रहांड की रचना की थी। इन्हें सृष्टि की आदि- स्वरूप, आदिशक्ति माना जाता है। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान ही है और इनका तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में जपमाला है। मां सिंह का सवारी करती हैं।
कूष्मांडा मंत्र:-
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: