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धूम धाम से मन रहा ललही छठ का त्योहार, जानें क्या है पूजा विधि और मान्यताएं।

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Posted On:Saturday, August 28, 2021

वाराणसी।पर्वों की नगरी काशी में शनिवार को धूम धाम से मनाया जा रहा है ललही छट का त्योहार। मुख्य रूप से कुंडो व पोखरों के किनारे मनाये जाने वाले इस पर्व पर वाराणसी के तमाम पोखरों पर सुबह से ही व्रती महिलाएं संतान के लंबी आयु के लिए ललही  छठ का व्रत रखते हुए पूजा अर्चना कर रहीं है। इस बार का व्रत का मुहूर्त भद्र माह के कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि जो कि 27 अगस्त को पड़ा था, कि शाम 6.50 बजे से 28 अगस्त के 8.55 बजे तक है ।

क्या है पूजन विधि:-
महिलाएं सुबह नित्यकर्मों से निवृत होकर पुत्र की दीघार्यु का संकल्प करें। नए वस्त्र धारण करके गोबर ले आएं। साफ जगह को गोबर के लेप से तालाब बनाएं। तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं। इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। इसके बाद कोई आभूषण और रंगीन वस्त्र चढ़ाएं। इसके बाद भैंस के दूध से बनें मक्खन से हवन करें। इसके बाद व्रत की कथा का श्रवण करें।

क्या है मान्यताएं:-
इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इस पर्व को हलछठ के अलावा कुछ पूर्वी भारत में ललई छठ के रुप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के अवतार में जन्म लिया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं करती हैं। यह व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है।

गंदगी पर आस्था पड़ी भारी :-
त्योहारो के बीच विडंबना यह है कि जिस पोखरे पर महिलाएं पूजा कर रही है उसका हल भी पूरा बेहाल है। जहाँ पूजा में ध्यान लगाना तो दूर हरे शैवालों के बदबू इतनी ज्यादा है कि वह दो मिनट बैठना भी दुश्वार है। निगम की बड़ी लापरवाही शंकुलधारा पोखरे में दिखी। जहा लोग पोखरे के पास पूजा पाठ कर रहें हैं वही दूसरी ओर पोखरा हरे शैबलो से पटा हुआ दिखाई दिया। निगम के द्वारा कुंड की सफाई तक नही की गई जिससे निकलने वाला बदबू पूजा में रुकावट का कार्य कर रहें थें।  


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