वाराणसी। रामनगर में होने वाली रामलीला वाराणसी ही नहीं वरन पूरे भारत में मशहूर है, जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं।सदियों से चली आ रही इस परंपरा पर कोरोना महामारी भारी पड़ गई जिसके कारण पिछले वर्ष रामलीला का आयोजन नहीं किया गया और इस वर्ष भी कोरोना की तीसरी लहर को मद्देनजर रखते हुए लीला का आयोजन ना होने की संभावना है। कोरोना महामारी के कारण लीला प्रेमियों को लगातार दूसरे साल रामनगर की रामलीला से वंचित होना पड़ेगा। रामलीला प्रेमियों को प्रथम गणेश पूजन का इंतजार था लेकिन श्रावण कृष्ण चतुर्थी के बीत जाने से यह उम्मीद भी टूट गई।
हालांकि अभी भी दुर्ग से जुड़े लोग कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं। हां दबे जुबान यह जरुर कह रहे है कि जब कोई प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई तो रामलीला होने का सवाल ही नहीं उठता है। रामलीला से जुड़े जानकर लोगों का कहना है कि श्रावण कृष्ण चतुर्थी से पूर्व रामलीला में पंच स्वरुपों की भूमिका निभाने वाले बालकों का चयन हो जाता था। इसके अलावा प्रथम गणेश पूजन पर सभी स्वरूपों सहित भगवान श्री गणेश व हनुमान जी के मुकुट की पूजा अर्चना होती थी। इसके बाद सभी पात्र को बलुआ घाट स्थित धर्मशाला में व्यास जी के सानिध्य में प्रशिक्षण दिया जाता हैं। तीन माह तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में सभी पात्र धर्मशाला में ही रहते हैं। इस दौरान पात्र धर्मशाला में रहकर रामचरित मानस से संबंधित चौपाइयों को कंठस्थ करते है। इस साल विश्व प्रसिद्ध रामलीला अनंत चतुर्दशी के दिन यानि 19 सितंबर से शुरू होनी थी। रामलीला के आयोजन को लेकर शुरू से ही लोग अटकलें लगा रहे थे।कोरोना के चलते धार्मिक कार्यक्रम पर रोक के चलते पिछले साल भी रामलीला स्थगित कर दी गई थी।जनकपुर स्थित राम जानकी मंदिर में केवल रामचरितमानस का पारायण पाठ कराया गया था। आशंका है कि इस बार भी केवल पिछले साल की तरह वहीं प्रक्रिया अपनाई जायेगी।
क्या है रामनगर की रामलीला का इतिहास:-
अंग्रेज जेम्स प्रिंसप ने लिखा है रामनगर की रामलीला 1830 में शुरू हुई थी। ब्रिटिश लाइब्रेरी में भी इसके प्रमाण मौजूद हैं। काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह के दादा महाराज बलवंत सिंह ने 18वीं शताब्दी के मध्य में इस भव्य रामलीला की नींव डाली थी। महाराज उदित नारायण अंग्रेजों के निशाने पर थे। वह काशी नरेश के हर काम में दखल डालते थे। शाही परिवार के सदस्य, कुंवर ईशान बताते हैं 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी रामलीला बंद नहीं हुई। लालटेन की रोशनी में आयोजित रामलीला की रोशनी बाहर न जाए इसके लिए पीएमओ के निर्देश पर रोशनी को पेड़ के पत्तों से ढंकने की व्यवस्था की गई थी, ताकि इसे आसमान से न देखा जा सके। और यह दुश्मनों की नजर से महफूज रहे।
राजपरिवार लेता है कलाकारों का ऑडिशन टेस्ट
रामनगर की रामलीला केवल पुरुषों द्वारा ही की जाती है। राम, उनके भाइयों और सीता की भूमिकाएं पुरुष ही निभाते हैं। किरदारों का चयन राज पैलेस के आधिकारी करते हैं। ऑडिशन टेस्ट के बाद जब वे कलाकारों को पास करते हैं तब अंत में राजपुरोहित यानी ब्राह्मण परिवार उनका अंतिम रूप से चयन करते हैं।
रिपोर्ट: सुदीप राज।