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काशी में ही है आदिशक्ति के गौरी स्वरूप का मंदिर,दर्शन से वर्ष भर मंगल और कल्याण

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Posted On:Monday, April 12, 2021

- चैत्र नवरात्र है खास, भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी का किया सृजन, 7वें अवतार भगवान राम का


 
वाराणसी,12 अप्रैल। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में चैत्र नवरात्र में आदि शक्ति के नौ स्वरूपोें के साथ गौरी स्वरूप के पूजन का भी विधान है। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों मां शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी (अन्नपूर्णा), सिद्धिदात्री के साथ गौरी स्वरूप में मुख निर्मालिका गौरी, ज्येष्ठा गौरी, सौभाग्य गौरी, श्रृंगार गौरी, विशालाक्षी गौरी, ललिता गौरी, मंगला गौरी और महालक्ष्मी गौरी की भी पूजा होती है। काशी में ही मां दुर्गा के सभी 09 गौरी स्वरूप विराजित है। 
 
पहले दिन अलईपुर स्थित शैलपुत्री केे दरबार में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए जाते है। मां शैलपुत्री जीवन में शांति,भय का नाश कर यश, कीर्ति, धन और विद्या प्रदान करती है। राजा हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा। एक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। उसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित को बुलाया गया। लेकिन महादेव को उन्होंने नही बुलाया। सती यज्ञ में जाने के लिए बेचैन हो गई। 
 
महादेव ने बिना निमंत्रण यज्ञ में जाने से मना किया लेकिन सती के आग्रह पर उन्होंने जाने की अनुमति दे दी। वहां जाने पर सती का अपमान हुआ। इससे दुखी होकर सती ने स्वयं को यज्ञकुंड में कूद कर भस्म कर लिया। तब महादेव ने क्रोधित होकर यज्ञ को तहस नहस कर दिया। यज्ञ में कूदी सती अगले जन्म में हिमालय राज की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। मुख निर्मालिका गौरी के दर्शन पूजन से मान्यता है कि वर्ष भर मंगल और कल्याण होता है।
 
काशी सुमेरूपीठ के पीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया कि चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा के उपासना का खास महत्व है। चैत्र नवरात्र से सनातनी (हिंदी) नववर्ष की शुरूआत होती है। इस दिन से सनातनी वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण भी होता है। ऐसे में घर परिवार में अन्न, धन, वैभव बना रहे, ग्रह अनुकूल हो। इसलिए भी आदिशक्ति की आराधना होती है। उन्होंने बताया कि आदि शक्ति के शक्तियों से ही सृष्टि का संचालन होता है। उनके पूजा से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। इसी दिन आदि शक्ति प्रकट हुई। उनके अनुरोध पर भगवान ब्रम्हा ने सृष्टि का निर्माण शुरू किया था। 
 
उन्होंने बताया कि चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन चराचर जगत के स्वामी भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी का सृजन किया था। भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम ने नवमी ​तिथि (रामनवमी) पर बाल रूप में अवतार लिया। देवी पुराण में भी चैत्र नवरात्र का वर्णन है। स्वामी नरेन्द्रानंद ने बताया कि भारत में नवरात्र मनाने का आध्यात्मिकता के साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं। 
 
शारदीय और चैत्र नवरात्र में मौसम बदलता है। वर्ष के इन दोनों समयों में मौसम में बदलाव और सूरज के प्रभाव से जीवन में संतुलन बनता है। दोनों नवरात्र में मौसम न अधिक सर्द रहता है और ना गरम। ऐसे में पूजा करने से हमारे भीतर संतुलित उर्जा का प्रवेश होता है। यह उर्जा जीवन में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद अच्छा होता है। इन नौ दिनों में व्रत के चलते शरीर बदलते मौसम के हिसाब से खुद ही उसमें ढल जाता है। सकारात्मक उर्जा के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है।
 


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