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पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने दायर की रिवीजन याचिका

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Posted On:Thursday, July 1, 2021

वाराणसी, 1st जुलाई 2021 | ज्ञानवापी परिसर में मंदिर था या मस्जिद थी, देश की आजादी के दिन परिसर का धार्मिक स्वरूप कैसा था, इसका पता लगाने के लिए अब रडार तकनीक और खुदाई के जरिये पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश के खिलाफ अदालत में बुधवार को रिवीजन/निगरानी याचिका दाखिल की गई। इस दौरान जिला जज ने रिवीजन याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं, इस बिंदु पर सुनवाई के  लिए नौ जुलाई की तिथि नियत की है।
 
 
वहीं अदालत में मौजूद  प्राचीन स्वयं भू लार्ड विशेश्वर मंदिर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी को आपत्ति के लिए रिवीजन याचिका की प्रति उपलब्ध कराया गया। यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ के अधिवक्ता अभय यादव और  तौहीद खान ने  फास्ट ट्रैक कोर्ट सिविल जज सीनियर डिवीजन के आठ अप्रैल 2021 के उस आदेश को रिवीजन याचिका में चुनौती दी है, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पांच सदस्यीय कमेटी के देखरेख में खुदाई का आदेश दिया गया था।
 
 
रिवीजन याचिका में कहा गया कि ऐसा करने का अधिकार इस अदालत को नहीं है, पूरे मुक़दमे की सुनवाई का अधिकार यहां की अदालत को नहीं है बल्कि सेंट्रल सुन्नी वक्फ  बोर्ड लखनऊ को है। इस मुद्दे पर हाइकोर्ट में मुकदमा हाइकोर्ट इलाहाबाद में विचाराधीन है।
 
निगरानी में यह भी कहा गया कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 का भी इस आदेश में उलंघन किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को आजादी के दिन मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे, धर्म स्थल की जो स्थिति रही है वैसी ही रहेगी। ज्ञानवापी मस्जिद 1669 से अस्तित्व में है लगभग चार सौ वर्ष पुराने मस्जिद की खुदाई से उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और मौके पर शांति व कानून व्यवस्था भी प्रभावित होगी।
निगरानी में मस्जिद खोदने के आदेश और पांच सदस्यीय कमेटी गठित करने के आदेश को अदालत के अधिकार क्षेत्र के बाहर का मामला बताया गया है। अब निगरानी याचिका के ग्राह्यता के बिंदु पर जिला जज की अदालत में 9 जुलाई को होगी।
 
निगरानी याचिका में प्राचीन मूर्ति लार्ड विशेश्वर, हरिहर पांडेय, वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी और मृत सोमनाथ  व्यास व रामरंग शर्मा को पक्षकार बनाया गया। मामले में विश्वनाथ मंदिर के  वाद मित्र की तरफ से ज्ञानवापी परिसर पुरातात्विक सर्वेक्षण कराकर धार्मिक  स्वरूप निर्धारित करने, पूजा पाठ और नए मंदिर के निर्माण की अनुमति वर्ष 1991 से लंबित इस मामले में मांगी गई है, जिस पर पुरातात्विक सर्वेक्षण का  कोर्ट ने आदेश दिया था।


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