बांग्लादेश की राजनीति के फलक पर दशकों तक अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष खालिदा जिया का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मंगलवार को उनकी पार्टी ने इस दुखद समाचार की पुष्टि की। लंबे समय से लीवर सिरोसिस, गठिया, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों से जूझ रहीं खालिदा जिया का जाना बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास के एक बड़े अध्याय का अंत माना जा रहा है।
राजनीतिक सफर: संघर्ष से सत्ता के शिखर तक
1945 में जन्मी खालिदा जिया का शुरुआती जीवन राजनीति से दूर था। 1960 में उनका विवाह सैन्य अधिकारी जियाउर रहमान से हुआ, जिन्होंने बाद में बांग्लादेश के राष्ट्रपति के रूप में देश की कमान संभाली और BNP की स्थापना की। 1981 में जियाउर रहमान की हत्या के बाद पार्टी बिखरने की कगार पर थी। ऐसे कठिन समय में पार्टी कार्यकर्ताओं के आग्रह पर उन्होंने 1984 में कमान संभाली।
खालिदा जिया ने दो बार पूर्ण कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया:
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1991 - 1996: वह बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
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2001 - 2006: उनके नेतृत्व में BNP ने दोबारा सत्ता में वापसी की।
'बैटल ऑफ बेगम्स': एक ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता
बांग्लादेश की राजनीति पिछले तीन दशकों से अधिक समय तक दो महिलाओं के इर्द-गिर्द केंद्रित रही—अवामी लीग की शेख हसीना और BNP की खालिदा जिया। वैश्विक मीडिया ने इसे 'बैटल ऑफ बेगम्स' का नाम दिया। 1980 के दशक में दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर सैन्य शासन के खिलाफ आंदोलन किया और लोकतंत्र की बहाली में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, 1991 में लोकतंत्र की वापसी के बाद दोनों नेताओं के बीच ऐसी राजनीतिक कटुता पैदा हुई जिसने देश की सत्ता को दो ध्रुवों में बांट दिया।
जेल, रिहाई और अंतिम समय
खालिदा जिया का अंतिम दशक काफी कष्टकारी रहा। भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी और उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता गया। 6 अगस्त 2024 को देश में हुई बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद उन्हें रिहा किया गया। बेहतर इलाज के लिए वह लंदन भी गईं, जहां उनके बड़े बेटे और वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष तारीक रहमान रह रहे थे। अपने जीवन के आखिरी महीनों में वह स्वदेश लौट आईं, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
खालिदा जिया की विरासत और प्रभाव
खालिदा जिया को एक ऐसी नेता के रूप में याद किया जाएगा जिन्होंने एक सैन्य अधिकारी की पत्नी से लेकर एक कुशल राजनेता बनने तक का सफर तय किया। उन्होंने बांग्लादेश में 'बांग्लादेशी राष्ट्रवाद' की अवधारणा को मजबूत किया, जो अवामी लीग के 'बंगाली राष्ट्रवाद' से अलग था।
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उपलब्धियां: उनके कार्यकाल में प्राथमिक शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुए।
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चुनौतियां: उनके शासनकाल के दौरान बढ़ते कट्टरवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि पर सवाल भी खड़े किए।