US, 10 March (News Helpline) अफ्रीकी नेताओं का कहना है कि पारंपरिक ईंधन छोड़कर अक्षय ऊर्जा अपनाने के लक्ष्य विकासशील देशों पर नहीं थोपे जाने चाहिए। वे चाहते हैं कि उन्हें तेल उत्पादन करने दिया जाए। नाइजीरिया और इक्वेटोरियल गिनी के नेताओं का कहना है कि अक्षय ऊर्जा अपनाने का दबाव विकासशील देशों पर नहीं होना चाहिए क्योंकि वहां अभी भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें ऊर्जा का कोई साधन मुहैया नहीं है। बुधवार को दुनिया के ऊर्जा परिवर्तन के चलन के बारे में बोलते हुए इन तेल उत्पादक देशों ने कहा कि विकासशील देशों को उनकी रफ्तार से ही परिवर्तन का अधिकार होना चाहिए।
अमेरिका में हुए एक ऊर्जा सम्मेलन में बोलेत हुए नाइजीरिया के तेल मंत्री टिंपीरे मार्लिन सिल्वा ने कहा कि दुनिया के 90 करोड़ लोग ऐसे हैं जो ऊर्जा की आधारभूत जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते और उनमें से अधिकतर अफ्रीका में हैं। सिल्वा ने कहा, "हम तो अभी लकड़ी जलाने से गैस की ओर जा रहे हैं। कृपया हमें अपने तरीके से अवस्थांतर करने दें।"
लावारिस पड़े रिसते कुएं बंद करने पर अमेरिका अरबों डॉलर खर्च करेगा इक्वेटोरियल गिनी के खनन और हाइड्रोकार्बन मंत्री गेब्रिएल ओबियांग लीमा ने भी सिल्वा की बात को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर बनाया जा रहा दबाव बहुत अन्यायपूर्ण है और अवस्थांतर पर चर्चा तभी संभव है जबकि ऊर्जा सुरक्षा का संकट खत्म हो जाए।
मांग तो विकसित देशों में है
विकासशील देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन ऐंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) के 38 सदस्य देश हैं जिनमें से कुछ दो दुनिया के सबसे धनी देशों में शामिल हैं। यदि भारत, रूस और चीन को इनमें मिला दें तो दुनियाभर में तेल की मांग का दो तिहाई हिस्सा इन्हीं का है। बाकी देश, जिनमें अफ्रीका, एशिया का बड़ा हिस्सा और दक्षिण अमेरिका शामिल है, सिर्फ 31 प्रतिशत मांग के लिए जिम्मेदार है।
मलयेशिया की सरकारी तेल कंपनी पेट्रोनस के अध्यक्ष तेंगकू मोहम्मद तौफीक ने कहा कि ऊर्जा सभी देशों का हक है।