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Movie Review - गंगूबाई काठियावाड़ी



मजबूत है आलिया का अभिनय पर अधूरी रिचर्स ने किया कहानी का कचरा

Posted On:Sunday, April 17, 2022

आलिया भट्ट (Alia Bhatt) और संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) की मोस्ट अवेटेड फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी (Gangubai Kathiawadi) शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फैन्स इस फिल्म का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। मेकर्स ने सिनेमाघरों में रिलीज करने के लिए इस फिल्म रिलीज डेट को कई बार टाला भी था।  हालांकि भंसाली से लोगों को जितनी उम्मीदें थी, फिल्म शायद उस पर पूरी तरह से खरी न उतर पाए. फिल्म की कहानी कमाठीपुरा की गंगूबाई की जिंदगी पर आधारित है, जिसे कभी उसके पति ने बेच दिया था और फिर वो सेक्स वर्कर बन गई थी। आलिया की मेहनत और दमदार एक्टिंग के बावजूद गंगूबाई एक बड़े निर्देशक की औसत फिल्म साबित हो सकती है. 

Gangubai Kathiawadi की कहानी
फिल्म की कहानी गुजरात के काठियावाड़ में पली बढ़ी गंगा हरजीवन दास काठियावाड़ी की। गंगा के पिता बैरिस्टर होते हैं। 16 साल की उम्र में गंगा अपने पिता के साथ काम करने वाले रमणिक के साथ बागकर मुंबई आ जाती है, अपना हीरोइन बनने का सपने पूरा करने के लिए।  मुंबई लाकर उसका पति उसे कमाठीपुरा की उन गलियों में बेच देता है, जहां पर हर रोज कई महिलाओं के जिस्म का सौदा होता है। पहले तो गंगा को यकीन नहीं होता लेकिन फिर धीरे-धीरे वो हालात से मजबूर होकर घुटने टेकती है या फिर हालात को ही बदलती है, इस सफर में उसके साथ और खिलाफ में शीला मौसी(सीमा पाहवा), रहीम लाला(अजय देवगन), कमली(इंद्रा तिवारी), अफसान(शांतनु महेश्वरी), रजिया बेगम (विजय राज) हैं. 

फिल्म की स्क्रिप्ट उस स्तर की नहीं है जिस कद के भंसाली खुद हैं और आलिया की अदाकारी है. कुछ एक सीन अच्छे बन पड़े हैं. जैसे आलिया कार में पैर पर पैर चढ़ाए बैठी हैं, सफेद साड़ी में उनकी एंट्री भी कमाल करती है. आलिया कहीं कहीं पर रूतबे वाली और दबंग नज़र आती हैं. गंगा का तैयार होकर सूनी आंखों से दरवाजे के पास आकर ग्राहक को बुलाना, रहीम लाला का कार के बोनट पर एक विलेन को मारना और ऐसे कई सीन हैं जो आपको झकझोर सकते हैं. फिल्म में उसूलों का पक्का रहीम अपने ही आदमी को बेरहमी से मार उसे सबक सिखाता है.  यहीं से रहीम और गंगूबाई की अनोखी बॉन्डिंग शुरू होती है. रहीम के रूप में भाई का सपोर्ट मिलने के बाद गंगूबाई की हिम्मत बढ़ती है.  आगे किस तरह गंगूबाई कमाठीपुरा में रहने वाली चार हजार औरतों के हक में लड़ती हैं. इस बीच कमाठीपुरा की प्रेसिडेंट के लिए (रजिया)विजय राज से छिड़ी जंग, प्रधानमंत्री नेहरू से मुलाकात, अफसान के प्यार में पड़ने की जर्नी गंगूबाई कैसे तय करती है इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी. 


देखने मिली Alia Bhatt की मेहनत
फिल्म में आलिया भट्ट ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। पर्दे पर इस फिल्म के लिए उनकी मेहनत साफ नजर आ रही है। इतना ही नहीं आलिया की आवाज में बदलाव देखने को मिला। पर्दे पर अपना रौब दिखाने के लिए आलिया ने जिस तरह से दमदार आवाज में डायलॉग डिलीवरी की है वो तारीफ के काबिल है। फर्स्ट हाफ में आलिया और सीमा पाहवा की एक्टिंग की दमदार जुगलबंदी रही है. लेकिन ट्रांसजेंडर के किरदार में विजय राज ने रजिया के किरदार में निराश किया है, स्क्रीन स्पेस ज्यादा न मिल पाने की वजह से विजय इसे खेल नहीं पाते हैं. वहीं शांतनु महेश्वरी अपनी कॉन्फिडेंट एक्टिंग से सरप्राइज करते हैं. अजय देवगन रहीम लाला के किरदार में जंचे हैं.

दमदार कहानी को पर्दे पर दिखने में फेल हुए भंसाली
डायरेक्शन की बात करें तो भंसाली की इस फिल्म में मजा नहीं आया। सिल्वर स्क्रीन पर गंगूबाई की उस दर्दभरी और रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी को दिखाने में संजय लीला भंसाली सफल नहीं हुए। 1945-1970 टाइम के बीच ट्रैवल करती कहानी में कई लूप होल्स हैं. फिल्म का फर्स्ट हाफ बिखरा हुआ सा लगता है. फिर सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ा संभलती है. जिसमें डायलॉग्स कई बार आपको तालियां बजाने पर मजबूर कर देंगे लेकिन असल किरदार पर बनने वाली कहानी को जितना प्रभावित होना चाहिए वो इस फिल्म में देखने को नहीं मिला

म्यूजिक और डांस के मामले में भी फिल्म में भंसाली का सिग्नेचर अंदाज देखने को मिलता है. लेकिन इसमें कुछ अलग व नयापन नहीं देखने को मिलेगा. कई जगह आपको दोहराव नजर आता है. गानें भी जुबान पर चढ़ने वाले नहीं हो पाए हैं, सच कहा जाये तो फिल्म में गंगूबाई की कहानी को सिर्फ उतना ही दिखाया गया जितना हुसैन जैदी ने अपनी किताब में लिखा। इस पर और ज्यादा रिसर्च करके फिल्म को दमदार बनाया जा सकता था। 


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