वाराणसी। पर्वों की नगरी काशी में सुबह से ही महिलाएं कुंडो तालाबों और पोखरों के निकट एकजुट होकर जीवित्पुत्रिका की पूजा अर्चना कर रहीं हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को माताएं संतान प्राप्ति और उनकी लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं।
यह हैं मान्यताएँ:-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत को करने से संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुण्य कर्मों को अर्जित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को जीवनदान दिया था, इसलिए यह व्रत संतान की रक्षा की कामना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के फलस्वरुप भगवान श्रीकृष्ण संतान की रक्षा करते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त-
यह व्रत पूरे दिन दिन तक चलता है। इसे सभी व्रतों में कठिन माना जाता है। माताएं अपने संतान की खुशहाली के लिए जितिया व्रत निराहार और निर्जला रखती हैं। इस साल यह पर्व 28 सितंबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत- 29 सितंबर 2021:-
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 28 सितंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट से अष्टमी तिथि समाप्त- 29 सितंबर की रात 8 बजकर 29 मिनट से।
जितिया व्रत कथा-
जीमूतवाहन युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर पिता की सेवा करने वन में चले गए थे। एक दिन जंगल में घूमते समय उन्हें नागमाता विलाप करते दिखी। जीमूतवाहन के नागमाता से विलाप का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। अपने वंश की रक्षा करने के लिए उन्होंने गरुड़ से समझौता किया है कि वे रोज गरुड़ को एक नाग खाने को देंगे। ऐसा करने पर वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा।
इस समझौते के बाद आज नाग के पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। जीमूतवाहन ने नागमाता की ये सारी बातें सुनकर उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उनकी रक्षा करके उन्हें वापस लौटा देंगे। जीमूतवाहन खुद को नाग के पुत्र की जगह कपड़े में लिपटकर गरुड़ के सामने उस शिला पर जाकर लेट गए, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है। गरुड़ आया और शिला पर से अपने जीमूतवाहन को पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ ले गया। गरुड़ ने देखा कि हर बार कि तरह इस बार नाग न चिल्ला रहा है और न ही रो रहा है। इस बार नाग बिल्कुल शांत है, उसने एकदम से कपड़ा हटाया, तो जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बताई, जिसके बाद गरुड़ ने उन्हें छोड़ दिया, इतना ही नहीं, नागों को न खाने का भी वचन दिया।
रिपोर्ट :- सुदीप राज।