वाराणसी। भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य भी कहा जाता है, जो वास्तव में एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। इनकी रोशनी से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है। इनकी किरणों से ही धरती में प्राण का संचार होता है। कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष के षष्ठी के दिन अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अब अगले दिन अर्घ्य देने के लिए गंगा की गोद में इंतज़ार करती इन महिलाओं की यही कामना है की अगले दिन सूर्य जब निकलेंगे तो एक नए तेज के साथ आयेंगे। जिसकी रौशनी इनके घर को खुशियों से भर देगी।
इस पर्व में जल और सूर्य की महत्ता है, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सूर्य षष्टी या छठ व्रत सूर्य भगवान को समर्पित है। इस महापर्व में सूर्य नारायण के साथ देवी षष्टी की पूजा भी होती है। काशी के पावन घाटों पर इस पर्व पर लाखों श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ पड़ा हैं। सबके मन में यही श्रद्धा यही होती है की भगवान भास्कर और छठी मैया मन की मुरादे पूरी करेंगी।
छठ पर वाराणसी के घाटों पर आस्था का जन सैलाब उमड़ पडा। गंगा की गोद में खड़े हो कर लाखों हाथों ने डूबते हुए सूर्य को इस कामना के साथ विदा कर रहे थे कि कल एक नए तेज के साथ आयेंगे और अपनी रौशनी से उनके घर को खुशियों से भर देंगे। इस पूजा में पानी और सूर्य का महत्व है। रंग बिरंगे वस्त्रों में सजी संवरी सभी महिलायें आस्था के उस रंग में रंगी हैं जिसकी छटा छठी मैया के गीत से और भी अलौकिक हो उठता है।