वाराणसी।आज शारदीय नवरात्र का नवमी तिथि (आठवा दिन) हैं।आज मां के स्वरूप मां सिद्धिदात्री की अराधना की जाती है।नवरात्रि की नवमी तिथि को बैंगनी या जामुनी रंग पहनना शुभ होता है। मां सिद्धिदात्री सिद्धियां प्रदान कर भक्तों के मनोकामनाएं पूरे करती हैं। मां सिद्धिदात्री अपने नाम से ही यह परिभाषित करती हैं कि वे सिद्धियों को देने वाली देवी हैं।माँ के प्रसन्न होने पर भक्तों को आठों सिद्धि मिल जाती है। आठों सिद्धियाँ इस प्रकार है- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वाशित्व। देवी भागवत पुराण के अनुसार, भगवान शिव जी ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ और वे लोक में अर्द्धनारीश्वर के रूप में स्थापित हुए। नवरात्रि पूजन के अंतिम दिन भक्त इन्हीं माता सिद्धिदात्री की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं। मान्यताएं है कि केवल नवरात्रों के नवें दिन भी कोई एकाग्रता और निष्ठा से इनकी विधिवत पूजा करे तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। मां की कृपा से सृष्टि में कुछ भी उसके लिए असंभव नहीं रहता।
माँ सिद्धिदात्री का मंदिर सी0के0 6/28 बुलानाला में स्थित है।
कैसा हैं मां का स्वरूप :-
नवमी तिथि को देवी के स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा होती हैं। नवरात्रि के नौ दिन के उत्सव का आज अंतिम दिन है। मां का इस रूप का वाहन सिंह हैं। मां सिद्धिदात्री की चार भुजाए है। गति के समय वे सिंह पर विराजमान होती हैं और अचला रुप में कमल पुष्प के आसन पर बैठती हैं। माता के दाहिनी ओर के नीचे वाले भुजा में चक्र तथा ऊपर वाले दाहिने भुजा में गदा धारण करती है। मां के बाईं ओर के नीचे वाले भुजा में शंख और ऊपर वाले भुजा में कमल पुष्प रहता है। माता सिद्धिदात्री की उपासना से भक्त को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
ये हैं मंत्र एवं पूजा विधि -
मां की पूजा कुश के अथवा पवित्र आसन पर बैठ के इने मंत्रो का जाप करें -
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
इसके बाद मां को इस दिन हलवा, पूड़ी, सब्जी, खीर, काले चने, फल और नारियल का भोग लगावें। अगरबत्ती, धूप दीप दिखावे। मां को पुष्प अर्पित करें एवं अंत में आरती उतारे।इस प्रकार मां की अराधना से भक्त को अलौकिक सिद्धियों,ज्ञान सफलता की प्राप्ति होती है।