वाराणसी। सोमवार से "नहाये खाये" के कार्यक्रम के साथ डालाछठ का चार दिवसीय महापर्व चालू हो गया है। इसके साथ ही गंगा घाटों पर पूजन अर्चन का कार्यकम भी चालू हो गया है। व्रती महिलाओं ने भोर में उठ कर रीती रिवाजो के साथ गंगा घाट पहुंची, जहाँ गंगा स्नान किया। फिर सूर्य पूजा के साथ ही व्रत की शुरुआत की। नहाने व पूजन के बाद "चने के दाल के साथ कद्दू भात" खाया और 36 घंटो का महाव्रत का प्रारम्भ किया। जिसके अंतर्गत वह पानी तक का सेवन नहीं कर सकती है ।
क्या है मान्यता ?
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है।
षष्ठी मां यानी छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।
वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है।पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।
इस साल छठ का आरंभ 8 नवंबर 2021 दिन सोमवार, नहाय-खाय से शुरू हो चुका है। 9 नवंबर मंगलवार को खरना किया जाएगा। अगले दिन10 नवंबर बुधवार को ढलते सूर्य को अर्घ्य देने दिया जाएगा। 11 नवंबर बृहस्पतिवार को सप्तमी तिथि में उगते सूर्य को छठ का अंतिम अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही यह महापर्व संपन्न होगा। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान सभी छठ मैया की भक्ति में लीन रहते हैं।