भारत में हरित क्रांति की तरह "नीली क्रांति" भी एक ऐसी पहल थी, जिसने देश के मत्स्य उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव लाया। इस बदलाव के जनक माने जाते हैं पद्मश्री डॉ. सुब्बान्ना अय्यप्पन, जिन्होंने मछली पालन की आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकें विकसित कर देश भर में लाखों लोगों की आजीविका को एक नई दिशा दी। लेकिन आज वही महान वैज्ञानिक कावेरी नदी में मृत पाए गए, जिससे न सिर्फ वैज्ञानिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है, बल्कि आम जनमानस भी स्तब्ध है।
डॉ. सुब्बान्ना अय्यप्पन: जिनका विज्ञान से रिश्ता था आजीवन
डॉ. अय्यप्पन का जन्म कर्नाटक के चामराजनगर जिले के यलांदूर नामक गांव में हुआ था। बचपन से ही उनका रुझान विज्ञान की ओर था। उन्होंने 1975 में मंगलुरु से मत्स्य विज्ञान में स्नातक (BFSc) और 1977 में मास्टर ऑफ साइंस (MFSc) की डिग्री ली। उनका शैक्षणिक सफर यहीं नहीं रुका – उन्होंने 1998 में बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की।
उनकी वैज्ञानिक समझ, मेहनत और नेतृत्व ने भारत में मत्स्य पालन की पारंपरिक पद्धतियों को वैज्ञानिक और लाभदायक व्यवसाय में बदल डाला। उनका सबसे बड़ा योगदान नीली क्रांति को दिशा देना रहा, जिसके लिए उन्हें 2022 में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।
‘नीली क्रांति’ क्या थी?
नीली क्रांति का उद्देश्य देश में मछली उत्पादन बढ़ाना, नई तकनीकों का उपयोग करना और मत्स्य पालकों की आमदनी में वृद्धि करना था। यह पहल कृषि के साथ मत्स्य उद्योग को जोड़ने की कोशिश थी, जिससे खाद्य सुरक्षा को भी मजबूती मिली। अय्यप्पन ने किसानों को यह समझाया कि जल स्रोतों का उपयोग कर वे अपनी आमदनी कैसे दोगुनी कर सकते हैं।
उनकी तकनीकों से:
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इनडोर और बायोफ्लॉक पद्धति जैसे आधुनिक तरीके सामने आए।
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मत्स्य पालन को ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का मजबूत जरिया बनाया गया।
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मछली पालन को महिलाओं और युवाओं के लिए भी एक आर्थिक विकल्प बनाया गया।
शैक्षणिक और संस्थागत योगदान
डॉ. अय्यप्पन केवल वैज्ञानिक नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेतृत्वकर्ता भी थे। उन्होंने:
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देश के कई प्रमुख कृषि और मत्स्य संस्थानों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
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वे इंफाल स्थित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (CAU) के कुलपति भी रहे।
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उन्होंने वैज्ञानिकों की एक नई पीढ़ी तैयार की जो आज देशभर में मत्स्य अनुसंधान और नवाचार को आगे बढ़ा रही है।
6 दिन से लापता, अब कावेरी में मिला शव
डॉ. अय्यप्पन पिछले 6 दिनों से लापता थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वे 7 मई 2025 से अपने मैसूर स्थित घर से बाहर निकले थे, लेकिन उसके बाद से उनका कोई पता नहीं चला। उनकी पत्नी और परिवार लगातार उनकी तलाश में लगे रहे।
शनिवार को पुलिस को सूचना मिली कि श्रीरंगपटना क्षेत्र में कावेरी नदी में एक शव देखा गया है। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को नदी से बाहर निकाला और जांच के बाद पुष्टि हुई कि वह शव डॉ. सुब्बान्ना अय्यप्पन का ही है।
इसके साथ ही, उनका स्कूटर भी नदी किनारे मिला, जिससे यह संकेत मिला कि वह अंतिम बार इसी इलाके में थे। शव की पहचान उनके परिवार ने की है। श्रीरंगपटना पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और मौत के कारणों की जांच की जा रही है।
क्या थी मौत की वजह?
इस समय तक मौत के पीछे के कारण स्पष्ट नहीं हैं। अभी कोई सुसाइड नोट या संदिग्ध सामग्री नहीं मिली है, जिससे आत्महत्या की पुष्टि की जा सके। कुछ विशेषज्ञ यह भी सवाल उठा रहे हैं कि कहीं यह कोई दुर्घटना तो नहीं थी। वहीं, परिवार और समर्थक चाहते हैं कि पूरी जांच निष्पक्ष और गहराई से की जाए।
एक महान वैज्ञानिक की अचानक मौत और सवाल
डॉ. अय्यप्पन की मौत ने एक बार फिर देश में वरिष्ठ वैज्ञानिकों की मानसिक स्थिति, सामाजिक जीवन और सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई वैज्ञानिकों ने सोशल मीडिया पर यह बात कही कि देश को अपने वैज्ञानिकों की ज्यादा मानसिक और सामाजिक देखभाल करनी चाहिए।
क्या उन्होंने किसी मानसिक तनाव में यह कदम उठाया?
क्या उनकी किसी से दुश्मनी थी?
क्या यह कोई साजिश थी?
इन सवालों के जवाब आना अभी बाकी हैं।
परिवार में मातम, वैज्ञानिक जगत में शोक
डॉ. अय्यप्पन अपने पीछे पत्नी और दो बेटियों को छोड़ गए हैं। परिवार इस घटना से पूरी तरह टूट चुका है। वहीं, वैज्ञानिक समुदाय, कृषि वैज्ञानिकों और मत्स्य विशेषज्ञों ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है। ICAR, कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
निष्कर्ष: एक विरासत जो हमेशा जिंदा रहेगी
डॉ. सुब्बान्ना अय्यप्पन भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सोच, शोध और योगदान भारत की नीली क्रांति के रूप में सदैव जीवित रहेंगे। उन्होंने जो रास्ता दिखाया, उस पर चलकर देश आज मछली उत्पादन में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है।
उनकी मृत्यु एक राष्ट्रीय क्षति है, लेकिन उनकी विरासत एक प्रेरणा है। जब-जब मछली पालन, ग्रामीण आजीविका और विज्ञान की बात होगी, तब-तब डॉ. अय्यप्पन का नाम श्रद्धा से लिया जाएगा। सरकार से भी यह उम्मीद है कि वे इस महान वैज्ञानिक की मौत की पारदर्शी जांच कराएं, ताकि सच्चाई सामने आ सके।
"भारत ने आज एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक मूक क्रांति के जनक को खो दिया है।"