नई दिल्ली, 15 मई । कोरोना महामारी समेत किसी भी संकट पर विजय पाने के लिए सकारात्मक सोच के साथ जागरुकता बहुत जरूरी है। सकारात्मकता हमारे संघर्ष को सरल बनाती है तो वहीं जागरुकता उन भ्रांतियों को दूर करती है जिनसे हमारे सकारात्मक क्रिया-कलाप प्रभावित होते हैं। इस संकट काल में भी समाज में कुछ ताकतें ऐसी हैं जो नकारात्मकता का ही प्रश्रय ले रही हैं। ये नकारात्मक शक्तियां कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बाधक हैं। समाज में जागरुकता लाने के लिए हमें इन नकारात्मक शक्तियों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों को दूर करने के लिए भी कार्य करना होगा। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल ने शनिवार को ‘कोरोना काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सकारात्मक भूमिका’ विषयक चर्चा सत्र को ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहीं।
ज्ञान फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित चर्चा सत्र में रामलाल ने कहा कि हर चुनौती एक अवसर भी लाती है। कुछ लोग इस अवसर का सकारात्मक उपयोग करते हैं जबकि कुछ लोग नकारात्मक। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस अवसर का उपयोग सामने वाले को कटघरे में खड़ा करने के लिए करते हैं। इसके मद्देनजर हमको जागरूक रहना चाहिए। समाज में भी ऐसा वातावरण बनाने की आवश्यकता है कि लोग सकारात्मक क्रिया-कलापों पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य हमारा अधिकार है और कुछ संगठन एवं विपक्ष के कुछ राजनीतिक दलों को भी यह सोचना होगा कि यह अधिकार कुचलने की कोशिश न करें। उन्होंने देश की सज्जन शक्ति का आह्वान किया कि भारत के बारे में नकारात्मकता फैलाने वाले टीवी चैनलों, व्यक्तियों और संगठनों को पत्र लिखकर अपना विरोध दर्ज कराएं। इसके लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया जा सकता है।
रामलाल ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक हर विपरीत परिस्थिति में समाज के सहयोग से लोगों का सहयोग करते हैं लेकिन संघ की भी अपनी एक सीमा है। उन्होंने कहा कि संघ सुझाव देने या प्रचार करने में विश्वास नहीं रखता। यह संघ का मूल स्वभाव नहीं है। संघ सिर्फ कार्य करने में विश्वास रखता है। हर प्राकृतिक आपदा-विपदा की घड़ी में संघ के स्वयंसेवक ‘जहां कम वहां हम’ के भाव से कार्य करते हैं। यही संघ का संस्कार है। ऐसा नहीं है कि संघ या संघ के लोग प्रचार से दूर हैं। हमारा प्रचार विभाग है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी है। उस पर हमारी सक्रियता भी है लेकिन सिर्फ प्रचार के लिए काम करना हमारा स्वभाव नहीं है।
उन्होंने कहा कि दुनिया की तुलना में भारत ऐसा देश है जहां किसी भी संकट की घड़ी में सरकार के साथ-साथ समाज के लोग भी सहयोग के लिए आगे आते हैं। कोरोना की पिछली लहर के दौरान पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों के लिए केंद्र और राज्य की सरकारों ने ट्रेनें चलाईं, बसें चलाईं। समाज के लोगों ने हर जरूरतमंद की हरसंभव सहायता की। भारत में कहीं भी विद्रोह की स्थिति नहीं बनी, हालांकि कई लोगों ने उनको भड़काने का प्रयास भी किया। प्रवासी मजदूर कष्ट सहन करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचे लेकिन इन नकारात्मक शक्तियों के बहकावे में नहीं आए।
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने कहा कि कोरोना महामारी संकट नहीं बल्कि महासंकट है। पूरी दुनिया इससे प्रभावित है। कोरोना की पहली लहर भी खतरनाक थी। उसकी भी पर्याप्त व्यापकता थी लेकिन समाज के लोगों का अनुशासन और संबंधित सरकारों की तत्परता के कारण समाज के अधिकतर लोग सुरक्षित रहे। इस बार भी केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों ने जनवरी से ही लोगों को जागरूक करने का कार्य शुरू कर दिया था, लेकिन ऐसा लगता है कि लोगों ने केंद्र सरकार की इन चेतावनियों को समान्य चेतावनी के रूप में ही लिया अथवा उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। कोरोना संक्रमण तेजी से फैलने का एक कारण यह भी रहा। रामलाल ने कहा कि इस संकट काल में हर प्रदेश सरकारों का भी दायित्व है कि वह इसके प्रति सकारात्मक माहौल बनाएं। वैक्सीन के प्रति उत्साह का माहौल बनाने के लिए भी प्रयास करना चाहिए। वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों की भी एक सीमा है। उन्होंने कहा कि कम समय में 18 करोड़ वैक्सीनेशन होना बड़ी बात है, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसकी गति और तेज होनी चाहिए।
कार्यक्रम की शुरुआत में कोरोना काल में उल्लेखनीय कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव कथन भी साझा किए।