वाराणसी। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में हुए शोध के अनुसार महज 8 साल में ही ब्लैक कॉर्बन से वाराणसी में होने वाली मौतों की संख्या में 5 फीसदी का इजाफा हुआ है। बीएचयू स्थित भारत-महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च (MCECCR) ने वर्ष 2009 से 2016 के बीच वायु प्रदूषण के आंकड़ों पर अध्ययन किया है। इसमें यह जानकारी सामने आई है।
8 साल के अंदर ब्लैक कार्बन के कारण मौत में हुआ इजाफा:
वर्ष 2009 में ब्लैक कार्बन से कुल 7718 मौतें दर्ज की गईं थीं। वर्ष 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 8449 पर आ गया। यानि कि वर्तमान में बनारस में फेफड़ों की बीमारी से रोजाना औसतन 23 लोगों की मौत होती है। जबकि 10 साल पहले तक रोजाना 21 मौतें होती थीं। सेंटर के पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो. आरके मल्ल के निर्देशन में डॉ. निधि सिंह द्वारा किया गया शोध प्रख्यात जर्नल एटमॉस्फियरिक एनवार्यनमेंट में प्रकाशित भी हो चुका है।
जीवन प्रत्याशा आयु में हो रही कमी:
प्रो. आरके मल्ल के मुताबिक, इस शोध में यह बताया गया है कि वाराणसी में ब्लैक कॉर्बन की वजह से लाइफ एक्सपेक्टेंसी (जीवन प्रत्याशा) घट रही है। वहीं महज 10 यूनिट ब्लैक कॉर्बन की बढ़ोतरी से ही वाराणसी में औसत मृत्युदर 5 फीसद तक बढ़ रही है।
जाड़े के दिनों में बढ़ जाती हवा में ब्लैक कार्बन की मात्रा
डॉ. निधि सिंह ने बताया कि धुंध और जाड़े के दिनों में पर्यावरण में ब्लैक कॉर्बन व नाइट्रोजन डाईआक्साइड समेत सभी प्रदूषक तत्वों की मात्रा सबसे ज्यादा पाई गई है। घर में जलने वाले चूल्हों, कूड़ा-करकट, कोयला-कंडी, वाहन आदि के धुएं से हवा की गुणवत्ता नीचे गिर रही है। वहीं शहर में निर्माण कार्य के कारण भी धूल तत्वों की मात्रा हवा में काफी घुल मिल गई है।
श्वसन तंत्र के सहारे प्रदूषक शरीर में करता है प्रवेश
डॉ. निधि सिंह ने बताया कि ब्लैक कॉर्बन से कार्डियो वस्कुलर, हाई ब्लड प्रेशर, दिल का दौरा, स्ट्रोक और श्वांस संबंधी रोगों में इजाफा हो रहा है। हवा की खराब क्वालिटी के कारण सबसे ज्यादा मौत अस्थमा मरीजों की हो रही है। वहीं, PM 2.5 और PM-10 जैसे सूक्ष्म प्रदूषक कण श्वसन तंत्र को और बड़े कण शरीर के अंदर फेफड़ों को संक्रमित कर देते हैं।
इसके साथ ही खून के सहारे ये प्रदूषक तत्व ह्रदय, किडनी और लीवर को भी नुकसान पहुंचाते हैं। डॉ. निधि ने पूरे 8 साल में वाराणसी के सभी अस्पतालों में इन रोगों से होने वाली मौतों का डाटा इकट्ठा कर अध्ययन किया। इसके परिणामस्वरूप उन्हें यह आंकड़ा मिला है।
गर्भ में पल रहे बच्चे को भी नुकसान
नेचर पत्रिका के एक अध्ययन के अनुसार ब्लैक कॉर्बन इतना खतरनाक है कि यह मां के प्लेसेंटा की लेयर को क्रॉस करके भ्रूण को भी नुकसान पहुंचा देता है। इसलिए घरों में गर्भवती महिलाओं को घर के चूल्हे के धुंए से दूर रहना चाहिए।