वाराणसी। बनारस वोकल्स के साथ आइए जुड़ते हैं पीएम नरेंद्र मोदी के अभियान वोकल फॉर लोकल्स के साथ और इस बार दिवाली मनाते हैं अपने लघु व कुटीर उद्योग के भाइयों, बहनों और माताओं की खुशियों के साथ। आधुनिकता के इस दौर में जहां आजकल हम ऑनलाइन शॉपिंग और शोरूम से शॉपिंग करने पर भरोसा करते हैं परंतु हमें इसका भी ख्याल रखना चाहिए कि हमें अपनी संस्कृति के साथ चलना और अपने साथियों का साथ देना हमारा धर्म और कर्तव्य है। इसलिए हमें लोकल के लिए वोकल होना ही पड़ेगा।
वोकल फ़ॉर लोकल के इस मुहिम में हमारा साथ दीजिए और खादी के वस्त्र खरीदे ,मेड इन इंडिया की झालरों के साथ घर सजाएं तथा मिट्टी के शुद्ध दियों से इस दिवाली अपने घर को रोशन करें ।
तो आइए जानते हैं कि हम कैसे बन सकते हैं लोकल दुकानदारों की खुशियों का हिस्सा -
"खादी वस्त्र नहीं बल्कि विचार है।"
खादी एक ऐसा वस्त्र का प्रकार जिसे खद्दर भी कहते है। हाथ से बनने वाले वस्त्र हैं, जो सूती, रेशम या ऊन से बने हो सकते हैं। इनके लिये बनने वाला सूत चरखे की सहायता से बनाया जाता है। हालांकि बदलते वक्त के साथ इसके निर्माण कार्य में भी बहुत बदलाव आया है। खादी वस्त्रों की विशेषता है कि ये शरीर को गर्मी में ठण्डे और सर्दी में गरम रखते हैं। लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं खादी की असली पहचान महात्मा गांधी और भारत के आजादी की लड़ाई से है। महात्मा गांधी ने कहा था खादी वस्त्र नहीं विचार है उसी मत में ,खादी सिर्फ एक वस्त्र नहीं बल्कि हमारी संस्कृति की पहचान भी है आइये इस संस्कृति के साथ जुड़कर हम हमारे देश के घरेलु उत्पादों को नई ऊचाइयों तक पहुंचाते है। एक वस्त्र संस्कृति और देश के नाम खरीदें और बस आप इस मुहीम वोकल फॉर लोकल्स का हिस्सा बने।इस दिवाली कुछ नया करते है डिजाइनर कपड़े तो हम हर साल लेते है। इस साल हम अपनी संस्कृति के विचारो के साथ दिवाली मनाते है और अपनी खुशियों के साथ- साथ अपने खादी वस्त्र निर्माण करने वाले भाइयों, बहनों के घर भी खुशियों का दिया जलाते है। आप अगर हमारा साथ इस अभियान में देना चाहते है तो बस आपको खादी के वस्त्र लेने है। वोकल फॉर लोकल की तरफ एक कदम बढ़ाना है।
"इस दिवाली पर घर रौशन करे मेड इन इंडिया की झालरों के साथ"
दिवाली मतलब रौशनी का त्यौहार रौशनी मतलब झालरे मगर झालरें अगर आप के घर को रौशन कर रही है। तो यह सिर्फ आपके घर ही तक सिमित नहीं है बल्कि आप जहां से झालर खरीद रहे हैं उनके घर को, फिर वो जहां खरीद रहे है उनके घर को ,ऐसे हमारे द्वारा खरीदी गयी। एक झालर कितनो के घर में खुशियों की रौशनी ला सकते है। कुछ व्यापारी तो साल में एक बार दिवाली के वक्त ही झालरों का व्यापार करते है परंतु हम उनका सपोर्ट करने में थोड़ी सी कमी कर देते है ।जो की इस बार हमे नहीं करनी है हमे मेड इन इंडिया की झालरें लेनी है न की चाइनिस। अक्सर चाइनिस झालरों के ज्यादा बिकने का कारण उसके कम दाम होते है परतुं अब बनारस की मार्केट में हर रेंज के झालर उपलब्ध है जो हर वर्ग के हिसाब से हर रंग में बेस्ट क्वालिटी के साथ वो मेड इन इंडिया के हैं।
"लोकल शॉप से दीये खरीद कर खुशियों से भरे सबकी दिवाली"
आज कल युवाओं की पहली पसंद बन चुकी है ऑनलाइन शॉपिंग हो भी क्यों न आसानी से घर बैठे सारा काम जो हो जाता है परन्तु ऑनलाइन शॉपिंग से हमारे लोकल दुकानदारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है हालही में बीते कोरोना काल ने तो उनका हाल ही ख़राब कर दिया था परन्तु अब डेढ़ साल बाद जब मार्केट ओपन हुई है तो हमे बनारसी होने फर्ज तो अदा करना ही चाहिए और प्रयास करना चाहिए की हम इस दिवाली लोकल शॉप्स से दिये ले और लोकल दुकानदारों के घर खुशियों से भरे। मार्केट में हर प्रकार के दिए उपलब्ध हैं डिजाइनर पेंट किए हुए दीये और सादे दीये भी आपके जरूरत के हिसाब से आपको लोकल शॉप पर भी आप की पसंद के दीए आसानी से मिल जाएंगे।
आइये हम बनारस वोकल्स के इस अभियान से जुड़कर पीएम नरेंद्र मोदी के वक्तव्य वोकल फॉर लोकल्स को सार्थक बनाये। और एक आत्मनिर्भर शहर की नीव रखें और साथ ही साथ बाकी शहरों के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत करें। और कोशिश करिए कि ज्यादा से ज्यादा आप लोकल शॉपिंग कर हमारे लोकल दुकानदारों की खुशियों में अपना योगदान दे।