वाराणसी। 10 सितम्बर को सोनारपूरा स्थित प्राचीन श्री चिंतामणि गणेश जी का अद्भुत भव्य वार्षिक हरियाली एवं जलविहार श्रृंगार किया गया। सर्वप्रथम भोर में 5:00 बजे मंगला आरती के बाद भक्तों के लिए बाबा के कपाट खोल दिए गए। भक्त बाबा की अलौकिक झांकी के दर्शन कर भाव विभोर हो गए। दर्शन पूजन का सिलसिला अनवरत चलता रहा ।
सुगंधित पुष्पों से किया गया भव्य श्रृंगार:
भोर में बाबा का स्नान कराकर, नए वस्त्र धारण कराए गए। उसके पश्चात सुगंधित पुष्पों से उनका मनमोहक श्रृंगार किया गया। तत्पश्चात मंगला आरती हुई ।इसी के साथ श्रद्धालुओं द्वारा श्री चिंतामणि गणेश जी के दर्शन पूजन का क्रम अनवरत शुरू हो गया । दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी रही। सभी को कोरोना वायरस के गाइड लाइन का पालन करते हुए थर्मल स्कैनिंग, हैंड सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मंदिर प्रांगण में प्रवेश दिया गया ।
काशी में चिंतामणि गणेश का दर्शन दूर होता है दुःख, दारिद्रा :
मंदिर के महंत चल्ला सुब्बाराव बताते हैं कि यह इकलौता मंदिर है जहां गणेश जी सपरिवार निवास करते हैं। ऊपर शुभ लाभ तो नीचे ऋद्धि-सिद्धि हैं। अष्टभुजा का विग्रह भी है । सबसे महत्वपूर्ण कि यह मंदिर और गणेश जी की प्रतिमा दक्षिण मुखी है। ऐसे में इन गणेश जी का महत्व कहीं ज्यादा बढ़ जाती है ।
बताया कि मान्यता है कि जब कोई दुःख, दारिद्र से त्रस्त हो जाता है, चिंताओं में घिरा रहता है तो इन गणेश जी की 40 दिन तक लगातार पूजा करने से उसकी सारी चिंता दूर होती है। सारे कष्ट दूर होते हैं। यश, कीर्ति, धन की प्राप्ति होती है। महंत सुब्बाराव ने बताया कि गणेश जी की आराधना के लिए दुर्वा ग्रास, धान का लावा और बेसन के लड्डू से पूजा करनी चाहिए। दुर्वा ग्रास से पूजन करने से व्यक्ति धनवान होता है। लावा चढ़ाने से यश-कीर्ति में वृद्धि होती है। विद्या अध्ययन में लाभ होता है। ऐसे में जिन बच्चों का मन पढ़ने में नहीं लगता है उनके माता पिता 40 दिन तक अगर लावा चढ़ाएं और ध्यान करें तो उनकी मन्नत पूरी होती है। वहीं लड्डू चढाने से हर तरह की मनोवांक्षित कामना पूर्ण होती है। बताया कि 40 दिन तक लगातार पूजन-अर्चन से मान्नत पूरी होने पर नारियल चढ़ाना चाहिए ।
उन्होंने बताया कि चिंतामणि गणेश की आराधना करने से वह प्रसन्न हो कर भक्त की सारी चिंताओं को खुद ले कर उसे चिंताओं से मुक्त करते है, यही वजह है कि इनका नाम चिंतामणि पड़ा। गणेश जी को मणि रूप में भी पूजा जाता है। बताया कि काशी खंड में चिंतामणि गणेश जी का नाम लंबोदर विनायक है तो केदार खंड में चिंतामणि नाम है। उन्होंने यह भी बताया कि हर महीने की चतुर्थी को प्रथमेश की पूजा करनी चाहिए। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है । इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रख कर रात में चंद्रमा को अर्घ्यदान के बाद गणेश जी की पूजा करने से संकट दूर होते हैं। वहीं शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं, उदया तिथि में चतुर्थी मिलने पर ही यह विनायक चतुर्थी मान्य होती है।
बताया कि भाद्रपद की चतुर्थी पर चिंतामणि गणेश जी का 11 दिन तक उत्सव मनाया जाता है। चतुर्थी तिथि को भव्य शोभा यात्रा निकलती है, संगीत समारोह होता है और विविध क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य करने वालों को प्रसाद स्वरूप सम्मानित किया जाता है।