वाराणसी। बारिश के बीच मौसमी बीमारियों के साथ ही डेंगू के मरीज भी बढ़ने लगे हैं। इसका असर ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दिख रहा है। यहां मरीजों की भीड़ के हिसाब से सुविधाएं अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं। मरीजों को प्राथमिक उपचार तो किसी तरह मिल जा रहा है, लेकिन खून की जांच, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और कुछ जरूरी दवाओं के लिए उन्हें जिला, मंडलीय अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
जिले में शहरी और ग्रामीण इलाकों को मिलाकर 50 से अधिक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। ओपीडी में पंद्रह-बीस दिनों से सर्दी, खांसी, बुखार और पेट संबंधी बीमारी के मरीज अधिक आ रहे हैं। गुरुवार को भी स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों की भीड़ लगी रही। कोई बुखार से परेशान था तो किसी को जोड़ों में दर्द था। लोगों ने चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने खून की जांच सहित अन्य जरूरी जांच कराने की सलाह दी। हालांकि कई कर्मचारियों के टीकाकरण ड्यूटी में लगने से स्टाफ की कमी महसूस हो रही साथ ही कामकाज पर भी असर पड़ रहा है।
अत्यधिक दबाव में मंडलीय अस्पताल की पैथोलॉजी :
वायरल फीवर, डेंगू का प्रकोप बढ़ने की वजह से मंडलीय अस्पताल की पैथोलॉजी पर जांच का दबाव बढ़ गया है। बीस दिन पहले एक दिन में 60 से 80 जांच होती थी। वहीं, यह संख्या 130 से 150 तक पहुंच गई है। सीबीसी, टीएलसी, डीएलसी आदि की जांच हो रही है। अधिकांश मरीज स्वास्थ्य केंद्रों से रेफर होकर आ रहे हैं। समय से जांच हो सके, ऐसे में टोकन सिस्टम को कड़ाई से लागू किया गया है। गुरुवार को पैथलॉजी में मरीजों की भीड़ लगी रही। कुछ लोग बाहर खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे।
चिकित्सक लिख रहे बाहर की दवा:
पिंडरा बाजार स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इन दिनों मरीज बाहर की दवा खरीदने को मजबूर हैं। औसतन 175 से अधिक मरीज ओपीडी में आते हैं। 25000 की आबादी वाले गांव में 20 से 25 लोगों को डॉक्टर देख तो लेते हैं, लेकिन कई दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ रही है। असीला निवासी रूपेश पांडेय अपने बेटे सोनू को बुखार होने पर दिखाने पहुंचे। डॉक्टर ने सरकारी पर्चे पर कुछ दवाइयां लिखी और उसी के साथ एक सादे कागज पर बाहरी दवाइयां भी लिख दी। खास बात यह है कि मरीज को बिना नाम पते के पर्चा भी दे दिया।