अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सीमा तनाव के जवाब में, तालिबान ने एक बड़ी सैन्य तैयारी शुरू कर दी है। तालिबान ने पंजशीर प्रांत से अपने 1,500 से अधिक प्रशिक्षित लड़ाकों (Trained Fighters) को हटाकर उन्हें तुरंत पाकिस्तान की सीमा से सटे महत्वपूर्ण दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों में तैनात कर दिया है। ये तैनाती कंधार, हेलमंद और जाबुल के इलाकों में की गई है, क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते हाल के दिनों में लगातार टकराव की ओर बढ़ते जा रहे हैं।
प्रशिक्षित कमांडो यूनिट्स की तैनाती
अफगानिस्तान इंटरनेशनल के सूत्रों के अनुसार, जिन लड़ाकों को पंजशीर घाटी से हटाया गया है, वे तालिबान की प्रशिक्षित और सक्रिय कमांडो यूनिट्स हैं।
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उद्देश्य: इन यूनिट्स को विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में संभावित पाकिस्तानी हमलों का मुकाबला करने के लिए तैनात किया गया है।
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रणनीतिक संकेत: तालिबान का मानना है कि यह कदम पाकिस्तान को एक मजबूत 'संकेत' देने के लिए पर्याप्त है कि नई अफगान सरकार किसी भी बाहरी आक्रामकता का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।
हाल ही में सीमा पर हुई गोलीबारी और ड्रोन हमलों के आरोपों के बीच यह तैनाती तनाव को और बढ़ा सकती है।
तालिबान की सैन्य शक्ति का आधार: अमेरिकी हथियार
2021 में अमेरिका की वापसी के बाद छोड़े गए सैन्य उपकरण अब तालिबान की सैन्य ताकत की रीढ़ बन चुके हैं। तालिबान के पास मौजूद भारी सैन्य जखीरे में शामिल हैं:
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एयरक्राफ्ट: $78$ अमेरिकी एयरक्राफ्ट।
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वाहन: $40,000$ से ज़्यादा मिलिट्री व्हीकल्स।
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आधुनिक हथियार: $3$ लाख से अधिक आधुनिक असॉल्ट राइफलें और अन्य हथियार।
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सोवियत उपकरण: सोवियत काल के कई टैंक, जिन्हें हाल में फिर से चालू किया गया है।
ये सैन्य संसाधन, जो पहले अमेरिकी और अफगान सुरक्षा बलों द्वारा उपयोग किए जाते थे, अब तालिबान की सबसे मजबूत शक्ति बन चुके हैं।
अमेरिका-तालिबान विवाद: $7 बिलियन का मुद्दा
अमेरिका और तालिबान के बीच $7 बिलियन के सैन्य संसाधनों को लेकर विवाद गहराया हुआ है।
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ट्रंप का आरोप: पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया कि बाइडन प्रशासन ने $7 अरब डॉलर के सैन्य संसाधन तालिबान के हाथों में छोड़ दिए।
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अमेरिका की मांग: अमेरिका अब तालिबान से इन संसाधनों को वापस करने की मांग कर रहा है।
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तालिबान का रुख: तालिबान ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। तालिबान प्रवक्ता अब्दुल क़हार बल्ख़ी के मुताबिक, "राज्यों की संपत्ति पर सौदे नहीं होते, बातचीत होती है।" तालिबान इन्हें अफगानिस्तान की संपत्ति मानता है, जिस पर उसका पूरा अधिकार है।
geopolitical️ नई रणनीति: लिथियम डिप्लोमेसी और खनिज संपदा
पाकिस्तान से संभावित टकराव के बीच, तालिबान की दीर्घकालिक रणनीति अफगानिस्तान के $1 ट्रिलियन मूल्य के खनिज भंडार पर टिकी हुई है।
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लिथियम का दांव: तालिबान के लिए अब सबसे बड़ा दांव लिथियम है, जिसे अक्सर 'नया सोना' कहा जाता है, और जो इलेक्ट्रिक वाहनों तथा हरित ऊर्जा प्रौद्योगिकी के लिए महत्वपूर्ण है।
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अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी: ट्रंप ने भी अफगानिस्तान की इन खदानों में अपनी रुचि दिखाई है, लेकिन इस दौड़ में चीन और रूस पहले ही भारी निवेश कर चुके हैं।
तालिबान को यह भी आशंका है कि पाकिस्तान की ओर से कोई भी सैन्य कार्रवाई अमेरिका के इशारे पर हो सकती है। इसलिए, रणनीतिक रूप से, तालिबान अपनी खनिज संपदा को सुरक्षित करने और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए रूस और चीन से भी मदद की उम्मीद कर रहा है