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क्या होती है फाइटर जेट में इजेक्ट तकनीक, क्यों नहीं बच सकी तेजस के पायलट नमंश की जान? कहां हुई चूक

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Posted On:Saturday, November 22, 2025

दुबई: दुबई में चल रहे प्रतिष्ठित एयर शो के दौरान एक दर्दनाक विमान दुर्घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। भारतीय वायु सेना (IAF) का स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस (Tejas) प्रदर्शन के दौरान अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो गया। एयर शो देखने आए दर्शकों के कैमरों में हादसे के वक्त की भयावह घटना रिकॉर्ड हो गई, जिसमें देखा जा सकता है कि दुर्घटनास्थल से काले धुएं का एक घना गुबार उठता है। इस दुखद हादसे में 34 वर्षीय जांबाज पायलट, विंग कमांडर नमंश स्याल शहीद हो गए। सबसे दुःखद पहलू यह रहा कि लड़ाकू विमानों में पायलट की जान बचाने वाली विशेष इजेक्ट तकनीक होने के बावजूद नमंश समय पर विमान से बाहर नहीं निकल पाए। नमंश स्याल हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नगरोटा के रहने वाले थे, और उनकी पत्नी भी वायुसेना में सेवारत हैं। उनके पिता भी भारतीय वायु सेना से रिटायर हो चुके हैं।

क्यों फेल हुई इजेक्ट तकनीक?

नमंश स्याल पहले ऐसे पायलट नहीं हैं जो इजेक्ट तकनीक होने के बावजूद अपनी जान नहीं बचा सके। यह हादसा एक बार फिर लड़ाकू विमानों में पायलटों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। शुरुआती रिपोर्ट्स और घटनास्थल के फुटेज के आधार पर यह माना जा रहा है कि विमान की अत्यधिक तेज गति के कारण पायलट नमंश स्याल को इजेक्शन प्रक्रिया शुरू करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। पायलटों को इजेक्शन का निर्णय लेने और प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिए कुछ सेकंड का समय मिलता है, लेकिन तेज गति के कारण विमान तेजी से जमीन की ओर बढ़ता है, जिससे प्रतिक्रिया का समय (reaction time) लगभग समाप्त हो जाता है। हालांकि, आधिकारिक जांच के बाद ही सटीक कारण की पुष्टि हो पाएगी।

पायलटों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है इजेक्ट तकनीक?

इजेक्ट तकनीक, जिसे इजेक्शन सीट भी कहा जाता है, विशेष रूप से लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल की जाने वाली एक जीवन रक्षक प्रणाली है। इसका उद्देश्य विमान क्रैश या गंभीर तकनीकी खराबी की स्थिति में पायलट की जान बचाना है। यह तकनीक यात्री विमानों में इस्तेमाल नहीं होती है।

इजेक्शन सीट में सीट के नीचे एक 'रॉकेट पावर सिस्टम' लगा होता है। खतरे की स्थिति में, जैसे ही पायलट इस सिस्टम को सक्रिय करता है, एक जोरदार झटके के साथ उसकी सीट विमान से अलग होकर लगभग 30 मीटर तक हवा में उछल जाती है। इसके तुरंत बाद, पायलट पैराशूट खोलकर सुरक्षित रूप से जमीन पर उतर सकता है। इस तकनीक ने कई मामलों में पायलटों की जान बचाई है, जैसे कि राजस्थान के जैसलमेर में हाल ही में हुए तेजस क्रैश के दौरान पायलट ने सफलतापूर्वक इजेक्ट कर अपनी जान बचाई थी।

हर बार साथ नहीं देती किस्मत

दुर्भाग्यवश, हर बार यह तकनीक सफल नहीं होती। कई बार क्रैश इतना अचानक होता है कि पायलट को इजेक्ट करने का मौका नहीं मिलता। कभी-कभी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले ही रॉकेट पावर सिस्टम क्षतिग्रस्त या जाम हो जाता है, जिससे इजेक्शन प्रक्रिया सक्रिय नहीं हो पाती। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इजेक्शन का झटका इतना तीव्र होता है कि पायलट को गंभीर चोटें भी आ सकती हैं। इसके अलावा, इजेक्शन सिस्टम विमान का सबसे संवेदनशील और खतरनाक हिस्सा होता है, और इसमें मामूली गड़बड़ी भी घातक साबित हो सकती है।

विंग कमांडर नमंश स्याल की शहादत ने देश को स्तब्ध कर दिया है। यह दुर्घटना न केवल भारतीय वायु सेना के लिए एक क्षति है, बल्कि यह उन तकनीकी चुनौतियों की ओर भी इशारा करती है, जिन पर भविष्य में और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हमारे जांबाज पायलटों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।


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