मुंबई, 19 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब दुनिया के सबसे बड़े रॉकेट्स में से एक बनाने की दिशा में काम कर रहा है। इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने मंगलवार को हैदराबाद स्थित उस्मानिया यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में जानकारी दी कि स्पेस एजेंसी 40 मंजिला इमारत जितना ऊंचा रॉकेट तैयार कर रही है। यह रॉकेट लो अर्थ ऑर्बिट में 75 हजार किलो यानी करीब 75 टन तक का भार ले जाने की क्षमता रखेगा। नारायणन ने बताया कि भारत का पहला रॉकेट, जिसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने डिजाइन किया था, 17 टन का था और केवल 35 किलो का भार उठा सकता था। उन्होंने कहा कि उस दौर से अब तक इसरो ने लंबी छलांग लगाई है और भारत अंतरिक्ष क्षेत्र की अग्रणी ताकतों में शामिल हो चुका है। इस साल इसरो कई अहम प्रोजेक्ट पूरे करने की योजना बना रहा है। इनमें अमेरिका का 6,500 किलो वजनी संचार उपग्रह भारतीय रॉकेट से लॉन्च करना, एन1 रॉकेट मिशन, नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NAVIC) सैटेलाइट और नौसेना के लिए खास सैन्य उपग्रह जीसैट-7आर शामिल हैं। जीसैट-7आर मौजूदा जीसैट-7 यानी रुक्मिणी की जगह लेगा।
नारायणन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर भारत जल्द ही 40 से 50 अंतरिक्ष यात्रियों की टीम तैयार करेगा, जो भविष्य के स्पेस मिशनों की अगुवाई करेंगे। इस मौके पर तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा ने उन्हें मानद डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि भी प्रदान की। इसरो प्रमुख ने हाल ही में अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की यात्रा का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि शुक्ला 20 दिन के मिशन के बाद सुरक्षित लौटे हैं और उनका अनुभव भारत के आने वाले स्पेस प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाएगा। उन्होंने खुलासा किया कि इस मिशन के लॉन्च से पहले एक तकनीकी लीकेज पकड़ा गया था, जिसे समय रहते ठीक कर दिया गया, वरना मिशन विफल हो सकता था।
नारायणन ने बताया कि भारत अब तक 133 से अधिक उपग्रह अंतरिक्ष में भेज चुका है और 1975 में आर्यभट्ट की लॉन्चिंग से शुरू हुई यात्रा आज जीसैट-11 जैसे 6,000 किलो वजनी उपग्रह तक पहुंच चुकी है। उन्होंने कहा कि भारत पहला देश है जिसने मंगल मिशन में पहली कोशिश में सफलता हासिल की और 104 उपग्रह एक ही रॉकेट से लॉन्च करने का रिकॉर्ड बनाया। हाल ही में आदित्य-एल1 मिशन से सूर्य का अध्ययन किया गया और इस दौरान 20 टेराबिट डेटा जुटाया गया। इस तरह की क्षमता दुनिया के केवल चार देशों के पास है और भारत उनमें से एक है।