मुंबई, 12 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। भारत में अक्टूबर 2025 के महीने में खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) घटकर 0.25% पर आ गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित यह दर मौजूदा सीरीज में अब तक की सबसे कम रही है। इससे पहले सितंबर में महंगाई दर 1.44% दर्ज की गई थी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह करीब 14 साल का निचला स्तर है, जिसका सबसे बड़ा कारण खाने-पीने की चीजों की कीमतों में आई गिरावट है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य महंगाई में भारी कमी देखी गई। सितंबर में जहां खाने-पीने की चीजों की सालाना महंगाई दर माइनस 2.28% थी, वहीं अक्टूबर में यह घटकर माइनस 5.02% हो गई। इसका मतलब है कि पिछले साल की तुलना में खाद्य वस्तुएं औसतन 5% तक सस्ती हुईं। सब्जियों, दलहनों और अनाजों की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर 1.07% से घटकर माइनस 0.25% और शहरी इलाकों में 1.83% से घटकर 0.88% पर आ गई।
महंगाई में यह तेज गिरावट उपभोक्ताओं के लिए राहत लेकर आई है, क्योंकि लगातार बढ़ती खाद्य कीमतों ने पिछले महीनों में बजट पर दबाव बनाया था। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह गिरावट मुख्य रूप से मौसमी कारणों और सप्लाई में सुधार की वजह से है। हालांकि, यह स्थिति लंबे समय तक स्थायी नहीं रह सकती, क्योंकि त्योहारों के बाद मांग बढ़ने और कच्चे तेल के दामों में संभावित वृद्धि से दिसंबर से महंगाई फिर ऊपर जा सकती है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के लिए यह डेटा सकारात्मक संकेत है। महंगाई दर अब केंद्रीय बैंक के लक्ष्य दायरे (2% से 6%) के निचले सिरे से भी नीचे चली गई है, जिससे आगे चलकर ब्याज दरों में कटौती की संभावना बन सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि RBI फिलहाल सतर्क रुख बनाए रखेगा, लेकिन लगातार कम महंगाई से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत बदलाव की गुंजाइश जरूर बनेगी।
वर्तमान CPI सीरीज 2012 के बेस ईयर पर आधारित है। इसका अर्थ है कि 2012 की औसत कीमतों को आधार (100) मानकर अन्य वर्षों की तुलना की जाती है। सरकार आमतौर पर हर 5-10 साल में नया बेस ईयर तय करती है ताकि बदलती अर्थव्यवस्था और उपभोग पैटर्न के अनुरूप डेटा सटीक रहे।
कुल मिलाकर, अक्टूबर की यह रिकॉर्ड लो CPI दर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए राहत का संकेत है। हालांकि, नीति निर्माताओं के लिए यह देखना जरूरी होगा कि आने वाले महीनों में यह गिरावट अस्थायी साबित होती है या वास्तव में कीमतों में स्थिरता की दिशा में कोई बड़ा बदलाव लाती है।