बनारस न्यूज डेस्क: वाराणसी में रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार महिला इंस्पेक्टर सुमित्रा देवी और सिपाही अर्चना राय की मुश्किलें कम होने के बजाय और बढ़ गई हैं। सोमवार को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विशेष अदालत ने दोनों की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि रिश्वत लेना एक गंभीर अपराध है, जो लोकनीति और जनता के भरोसे के खिलाफ है। कोर्ट ने दोनों की न्यायिक हिरासत बढ़ाते हुए उन्हें जेल में रखने का आदेश दिया।
जमानत याचिका के दौरान बचाव पक्ष ने कई दलीलें दीं, लेकिन न्यायाधीश ने उन्हें अपर्याप्त मानते हुए जमानत मंजूर नहीं की। सरकारी पक्ष के अधिवक्ताओं प्रथमेश पांडे और कमलेश यादव ने जमानत का विरोध किया। इससे पहले रिश्वतखोरी के खुलासे के बाद पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने इंस्पेक्टर सुमित्रा देवी और उनकी सहयोगी अर्चना राय को निलंबित कर दिया था। दोनों के खिलाफ विभागीय जांच भी चल रही है, जिनमें वाराणसी और लखनऊ की कई शिकायतें शामिल हैं।
यह मामला तब सामने आया जब एक व्यक्ति मेराज ने महिला थाने की इंस्पेक्टर पर रिश्वत मांगने का आरोप लगाया। मेराज ने बताया कि उसकी भाभी ने घरेलू विवाद में झूठा केस दर्ज कराया था। इंस्पेक्टर ने नाम हटाने के लिए 20 हजार रुपए मांगे। मेराज ने एंटी करप्शन टीम को सूचना दी, जिसके बाद जाल बिछाया गया। जब मेराज ने 10 हजार रुपए महिला सिपाही अर्चना राय को दिए, तभी टीम ने दोनों को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
सुमित्रा देवी का पुलिस करियर पहले से विवादों में रहा है। वह 2010 में दरोगा बनी थीं और लखनऊ में विभिन्न थानों में तैनात रहीं। 2021 में उनका तबादला वाराणसी हुआ, जहां वे महिला थाने की प्रभारी बनीं। रिश्वतखोरी के मामले में गिरफ्तारी के बाद अब वे जेल में हैं, जबकि विभागीय जांच भी जारी है।