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नवरात्र का दूसरा दिनः मां ब्रह्माचारिणी की होती है पूजा, जानिए क्या है पूजन विधि, सामग्री और विशेष मंत्र।

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Posted On:Tuesday, September 27, 2022

वाराणसी। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। तप की देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला और बायें हाथ में कमण्डल होता है। कहते हैं देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है। शास्त्रों में देवी ब्रह्मचारिणी को हिमालय की पुत्री बताया गया है और हजारों वर्षों तक तपस्या करने पर ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। माता ने इस रूप में फल-फूल के आहार से 1000 साल व्यतीत किए, और धरती पर सोते समय पत्तेदार सब्जियों के आहार में अगले 100 साल और बिताए। जब माँ ने भगवान शिव की उपासना की तब उन्होने 3000 वर्षों तक केवल बिल्व के पत्तों का आहार किया। अपनी तपस्या को और कठिन करते हुए, माँ ने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और बिना किसी भोजन और जल के अपनी तपस्या जारी रखी, माता के इस रूप को अपर्णा के नाम से भी जाना गया।

इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। इसलिए माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप एक तपस्विनी का है, जिन्हें सभी विद्याओं का ज्ञाता माना जाता है। मान्यता है कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से निर्बुद्धियों को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है। 
 
ऐसा हैं मां का स्वरूप :
मां ब्रह्मचारिणी को देवी स्वरस्वती का भी रूप माना जाता है। इसलिए इनकी साधना एवं पूजा छात्रों के लिए बहुत ही लाभप्रद कहा जाता है। इनकी साधना से मेधा शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। 
 
पूजा सामग्री :
माता की पूजा में लाल रंग की चुनरी रखें। माना जाता है कि मां दुर्गा को लाल रंग अधिक पसंद है। मां के लिए लाल चुनरी, कुमकुम, मिट्टी का पात्र, जौ, साफ की हुई मिट्टी, जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, लाल सूत्र, मौली, इलाइची, लौंग, कपूर, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, पानी वाला नारियल, फूल माला और नवरात्रि कलश मंगा लें। पूजा के लिए लाल रंग के आसन का इंतजाम कर लें। आसन ना होने पर आप लाल रंग के कपड़े का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. 
 
 
ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि :
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए सबसे पहले घर की शुद्धि करें और फिर खुद भी स्नान करें। इसके बाद जिस स्थान पर देवी मां विराजमान हैं उस जगह की शुद्धिकरण करें। फिर देवी की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शक्कर, घी और शहद से स्नान कराएं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करें। घी और कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. देवी को प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद के बाद आचमन करें और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें। 
 
 
इस मंत्र का जाप करे :
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
 
स्तोत्र पाठ:
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
 
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल द्वितीया 
अन्य नाम: देवी अपर्णा
सवारी: नंगे पैर चलते हुए।
ग्रह: मंगल - सभी भाग्य का प्रदाता मंगल ग्रह।
शुभ रंग: नारंगी


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