अमेरिका ने हाल ही में अपनी 48 पेज की नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी (NSS) रिपोर्ट जारी की है, जिसने वैश्विक समीकरणों और शक्ति-गठजोड़ों पर फिर से बहस तेज कर दी है। रिपोर्ट में चीन को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी, सबसे गंभीर और बहुआयामी चुनौती बताया गया है। यही कारण है कि इस दस्तावेज़ में चीन पर पूरा एक विस्तृत अध्याय समर्पित किया गया है, जिसमें उसके सैन्य आधुनिकीकरण, इंडो-पैसिफिक में दबाव नीति, आर्थिक जबरदस्ती और साइबर-टेक्नोलॉजी चोरी के खतरों को प्रमुखता से चिह्नित किया गया है।
इसके विपरीत, दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति और तेजी से उभरती वैश्विक ताकत भारत का इस रिपोर्ट में सिर्फ चार बार उल्लेख होना अपने आप में दर्शाता है कि वर्तमान अमेरिकी रणनीतिक प्राथमिकताओं का केंद्र बिंदु कौन है। रिपोर्ट का संदेश साफ है—अमेरिका की सुरक्षा और सैन्य-राजनीतिक पॉलिसी में चीन मुख्य प्रतिद्वंद्वी है और बाकी देश केवल संतुलन स्थापित करने के साधन।
भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी, लेकिन सीमित भूमिका
रिपोर्ट में भारत को “प्रमुख रक्षा साझेदार” और “इंडो-पैसिफिक में स्थिरता का स्तंभ” बताते हुए यह भी जोड़ा गया है कि चीन की सैन्य और आर्थिक आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए भारत के साथ रक्षा-तकनीक, खुफिया साझेदारी और हिंद-प्रशांत सुरक्षा ढांचे को और मजबूत किया जाएगा।
रिपोर्ट का एक प्रमुख बयान इस दिशा को स्पष्ट करता है—“हम एक मुक्त, स्थिर और खुले हिंद-प्रशांत के लिए भारत के साथ रक्षा सहयोग को गहरा करेंगे। यानी भारत को अभी भी एक पूर्ण वैश्विक साझेदार की बजाय चीन को संतुलित करने वाले भू-राजनीतिक धुरी के रूप में देखा जा रहा है। क्वाड की भूमिका और भविष्य भी इसी सुरक्षा दृष्टिकोण पर आधारित है। क्वाड की इस वर्ष भारत में होने वाली शिखर बैठक के स्थगन को भी ट्रंप प्रशासन के व्यापारिक शुल्क विवादों और दोनों देशों के बीच बढ़ती असहजता के संदर्भ में उल्लेख किया गया है। इससे भी संकेत मिलता है कि सहयोग मजबूत है लेकिन संबंधों में भरोसे की अनिश्चितता बनी हुई है।
पाकिस्तान लगभग अप्रासंगिक
NSS रिपोर्ट में पाकिस्तान का नाम केवल एक बार आया है—वह भी भारत-पाक संघर्ष और ट्रंप द्वारा दावा किए गए संघर्ष विराम के संदर्भ में। इसके अतिरिक्त कहीं भी पाकिस्तान को सुरक्षा रणनीति में न नीति-निर्माण केंद्र में जगह मिली, न ही रणनीतिक साझेदार की श्रेणी में। यह स्थिति तब और दिलचस्प हो जाती है जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित कर दिया और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर हाल के महीनों में कई बार अमेरिकी दौरे कर चुके हैं। इसके बावजूद, अमेरिका की रणनीति में पाकिस्तान को अब कोई प्राथमिकता न मिलना Indo-Pak-U.S. समीकरण में बड़े बदलाव की ओर संकेत है।
चीन: अकेला प्रतिद्वंद्वी, वैश्विक चुनौती
रिपोर्ट में चीन को अमेरिका की शक्ति, तकनीकी प्रभुत्व, नौसेनिक विस्तार और आर्थिक दबाव नीति के खिलाफ सबसे गंभीर प्रतिद्वंद्वी कहा गया है। बयान सीधे और स्पष्ट है—
“चीन इकलौता ऐसा देश है जो अमेरिका की वैश्विक शक्ति को चुनौती देने की इच्छा, संरचना और क्षमता—सब रखता है।”
यह उल्लेख न केवल भविष्य की अमेरिकी विदेश नीति का ढांचा निर्धारित करता है, बल्कि Indo-Pacific में सैन्य प्रतिस्पर्धा को और तीव्र करेगा।