‘जॉली एलएलबी 3’ – अदालत की जंग, इंसाफ की पुकार
ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक सवाल है — जो हम सब से किया गया है।
निर्देशक: सुभाष कपूर
कलाकार: अक्षय कुमार, अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला, सीमा बिस्वास, गजराज राव, हुमा कुरैशी, अमृता राव, शिल्पा शुक्ला
समय: 2 घंटे 37 मिनट
निर्देशक सुभाष कपूर की तीसरी फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ सिर्फ एक कोर्टरूम कॉमेडी नहीं है, बल्कि यह सिस्टम से सवाल करने वाली, भावनाओं सेजुड़ी और सोचने पर मजबूर करने वाली एक सशक्त सामाजिक कहानी है। जहां पहले दोनों भागों में हंसी-मजाक के साथ न्याय की लड़ाई दिखाई गईथी, वहीं इस बार मामला कहीं ज़्यादा गंभीर, संवेदनशील और उद्देश्यपूर्ण है।
कहानी की शुरुआत राजस्थान के एक गांव से होती है, जहां किसान और कवि राजाराम सोलंकी आत्महत्या कर लेते हैं। उनकी पत्नी जानकी (सीमाबिस्वास) दिल्ली की अदालत में न्याय की गुहार लगाती है। यहां दो वकील – जॉली मिश्रा (अक्षय कुमार) और जॉली त्यागी (अरशद वारसी) – इसकेस में आमने-सामने होते हैं। शुरुआत में दोनों की लड़ाई अहंकार और शोहरत के लिए होती है, लेकिन धीरे-धीरे केस की गंभीरता उन्हें समझ आती हैऔर दोनों एक जिम्मेदारी महसूस करने लगते हैं। यह ट्रांजिशन फिल्म को एक भावनात्मक गहराई देता है।
जज सुंदरलाल त्रिपाठी के रोल में सौरभ शुक्ला इस फिल्म की जान हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग, मानवीयता और बुद्धिमत्ता हर सीन को जीवंत बनातीहै। अक्षय कुमार ने इस बार एक गंभीर और संयमित परफॉर्मेंस दी है, जो उनके किरदार को और विश्वसनीय बनाती है। अरशद वारसी, हमेशा की तरह, अपने स्वाभाविक अंदाज़ में खूब जमते हैं, और उनका क्लाइमैक्स वाला कोर्ट स्पीच वाकई में दिल को छू जाता है।
सीमा बिस्वास, एक शांत लेकिन मज़बूत महिला के किरदार में, कम संवादों में भी गहरी छाप छोड़ती हैं। गजराज राव ने एक अमीर और ताक़तवरबिल्डर की भूमिका निभाई है, जो थोड़ा और विस्तार मांगती थी, लेकिन फिर भी प्रभावी है। वहीं शिल्पा शुक्ला पुलिस अधिकारी के रूप में हल्कापनलाती हैं और फिल्म को संतुलन देती हैं।
फिल्म की कहानी किसान आत्महत्याओं, ज़मीन घोटालों और राजनीतिक शोषण जैसे गंभीर मुद्दों को छूती है — लेकिन बिना उपदेशात्मक हुए। यहफिल्म दिखाती है कि कैसे ताक़तवर लोग सिस्टम का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं, और कैसे आम आदमी की आवाज़ अदालत तक पहुंचनेमें दम तोड़ देती है। निर्देशक सुभाष कपूर ने हास्य और गंभीरता के बीच संतुलन बनाए रखा है, हालांकि कुछ सीन्स में टोन थोड़ा अस्थिर लगता है।
तकनीकी तौर पर फिल्म मजबूत है। गांव और शहर के बीच का फर्क सिनेमैटोग्राफी से साफ दिखता है। संगीत सधा हुआ है और दृश्य के साथ मेलखाता है। हालांकि एक गाना सेकंड हाफ में फिल्म की गति को थोड़ी देर के लिए धीमा कर देता है।
‘जॉली एलएलबी 3’ हमें याद दिलाती है कि इंसाफ सिर्फ कोर्ट में नहीं, ज़मीर में भी होना चाहिए। यह फिल्म हंसी और व्यंग्य के बीच इंसानियत कीलड़ाई लड़ती है। यह बताती है कि वकील बनना सिर्फ दलील देने से नहीं होता, बल्कि सच्चाई के लिए खड़े होने से होता है।
अगर आप सामाजिक विषयों पर बनी सशक्त कहानियां पसंद करते हैं और सोचते हैं कि कॉमेडी और गंभीरता एक साथ नहीं चल सकती — तो येफिल्म आपको गलत साबित कर सकती है। ‘जॉली एलएलबी 3’ मनोरंजन भी करती है और एक गहरी बात भी कह जाती है — चुपचाप, लेकिनअसरदार ढंग से।
देखिए जरूर, क्योंकि ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक सवाल है — जो हम सब से किया गया है।