बनारस न्यूज डेस्क: यह पूरी कहानी हम ऐसे समझें जैसे सामने बैठकर बात कर रहे हों—काशी की महिलाएं अब सच में अपने घरों की चारदीवारी से निकलकर अपनी पहचान बना रही हैं। वे न सिर्फ अपने परिवार की आय बढ़ा रही हैं, बल्कि पूरे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई रफ्तार दे रही हैं। दीनदयाल अंत्योदय योजना–राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में वाराणसी का प्रदर्शन फिर से पूरे यूपी में नंबर-1 रहा है। अक्टूबर की रैंकिंग में जिला टॉप पर पहुँचा, और ये पिछले छह महीनों में चौथी बार है।
मुख्य विकास अधिकारी प्रखर कुमार सिंह के मुताबिक, प्रदेश स्तर पर 37 पैमानों पर हर जिले का मूल्यांकन किया जाता है—और वाराणसी ने लगभग हर पहलू पर बेहतरीन काम किया है। पिछले छह महीनों में चार बार जिले ने पहला स्थान पाया और दो बार टॉप-10 में जगह बनाई। महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ना, फंड उपलब्ध कराना, आजीविका के साधन देना, उत्पादक समूह बनाना, बैंक सखियों का चयन—हर क्षेत्र में वाराणसी का काम दूसरों के लिए मिसाल बन गया है।
उपायुक्त (स्वरोजगार) पवन कुमार सिंह बताते हैं कि जिले में करीब 11,879 स्वयं सहायता समूह सक्रिय हैं, जिनसे एक लाख अड़तीस हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं। ये महिलाएं खेती-किसानी से लेकर अचार-मुरब्बा, सिलाई-कढ़ाई, सिल्क साड़ी, किराना दुकान, टेक-होम राशन प्लांट, बीसी सखी, विद्युत सखी और ड्रोन सखी जैसी आधुनिक आजीविका में भी कदम बढ़ा रही हैं। चिरईगांव की अमृता देवी कहती हैं—"हममें हुनर था, बस मौका नहीं था। सरकार की मदद ने हमें पहचान दी है।"
सरकार अब इन महिलाओं के उत्पादों को बाजार से जोड़ने पर भी जोर दे रही है। सरस मेला और विभागीय मेलों में इनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है, साथ ही ऑनलाइन मार्केट से कनेक्ट कराने और काशी प्रेरणा मार्ट जैसे आउटलेट खोलने पर भी काम चल रहा है। महिलाओं को मधुमक्खी पालन, बकरी पालन, मखाना की खेती, बीमा सखी जैसी नई गतिविधियों से जोड़ने के लिए अभियान भी चल रहा है। अंजू देवी बताती हैं—“आज महिलाएं न सिर्फ कमाती हैं बल्कि सम्मान भी कमा रही हैं। जो बैंक जाने से घबराती थीं, वही अब पूरे आत्मविश्वास से बैंकिंग कर रही हैं।”