मुंबई, 26 जून, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सड़क परिवहन निगम के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें मेडिकल अनफिट ड्राइवर्स को बस चलाने की ड्यूटी पर लगाया गया था। यह फैसला जस्टिस सुदेश बंसल की अदालत ने छतर सिंह और अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया। कोर्ट ने इस आदेश को यात्रियों की जान को खतरे में डालने वाला करार दिया और रोडवेज की कार्रवाई पर गंभीर आपत्ति जताई। याचिका में कहा गया था कि अलवर के चीफ मैनेजर ने बिना किसी मेडिकल बोर्ड की जांच के ऐसे ड्राइवर्स की रूट ड्यूटी लगा दी है जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं। नियमों के अनुसार, जिन ड्राइवर्स को मेडिकल बोर्ड ने अनफिट घोषित किया हो, उन्हें बस चलाने जैसी हैवी ड्यूटी नहीं दी जा सकती। उन्हें बुकिंग विंडो, टाइम कीपर, सुरक्षा गार्ड, मेंटिनेंस या लिपिकीय कार्यों में लगाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के वकील विनायक जोशी ने कोर्ट को बताया कि ये ड्राइवर्स सालों से सेवा में हैं लेकिन एक्सीडेंट की वजह से किसी के पांव में तो किसी के हाथ में रॉड लगी हुई है। ऐसे में उन्हें दोबारा बिना मेडिकल जांच के रूट पर भेजना न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि यात्रियों की जान के साथ भी खिलवाड़ है।
मुख्यालय के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि ऐसे मामलों में मेडिकल बोर्ड की जांच जरूरी है और उसी रिपोर्ट के आधार पर कोई भी निर्णय लिया जाना चाहिए। इसके बावजूद अलवर के अधिकारी ने मनमानी करते हुए अनफिट ड्राइवर्स को बस संचालन की जिम्मेदारी दे दी। पिछली सुनवाई पर जब रोडवेज की ओर से कोई प्रतिनिधि कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो हाईकोर्ट ने रोडवेज के प्रबंध निदेशक पुरुषोत्तम शर्मा को तलब किया। गुरुवार को वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में उपस्थित हुए और गैरहाजिरी को लेकर स्पष्टीकरण दिया, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। वहीं, रोडवेज के वकील ने कोर्ट को बताया कि जिन अधिकारियों ने मेडिकल जांच के बिना अनफिट ड्राइवर्स को ड्यूटी पर भेजा, उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। हाईकोर्ट के इस आदेश को यात्रियों की सुरक्षा और ड्राइविंग मानकों के पालन की दिशा में एक सख्त संदेश माना जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि नियमों की अनदेखी कर किसी की जान जोखिम में न डाली जाए।