कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बावजूद मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच जारी खींचतान थमने का नाम नहीं ले रही है। बयानबाजी और लॉबिंग ज़ोरों पर है, और कांग्रेस आलाकमान इस संवेदनशील मामले को सुलझाने के लिए लगातार मंथन कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, फ़िलहाल 100 से ज़्यादा विधायक सिद्धारमैया के पक्ष में हैं, जबकि डीके शिवकुमार के समर्थन में कम विधायक ही सक्रिय रूप से लॉबिंग कर रहे हैं।
आलाकमान का "वेट एंड वॉच" प्लान
कांग्रेस आलाकमान कर्नाटक के नेतृत्व संकट को हल करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रहा है। शुरुआती संकेत यह हैं कि सिद्धारमैया के पास ही सीएम की कुर्सी बनी रह सकती है। आलाकमान का एक प्रमुख प्लान यह है कि सिद्धारमैया से बातचीत कर उन्हें यह आश्वासन दिया जाए कि वह 3 साल बाद या अधिकतम 4 साल बाद डीके शिवकुमार को सीएम पद सौंप देंगे।
इस फॉर्मूले का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सिद्धारमैया ख़ुशी-ख़ुशी अगली कांग्रेस सरकार बनाने में पूरा ज़ोर लगाएँ और उसके बाद डीके शिवकुमार को पूरे 5 साल के लिए सीएम बनने का मौका मिले। इसके साथ ही, सिद्धारमैया के पोते को विधायक बनाकर कैबिनेट में अहम ज़िम्मेदारी देने का वादा भी किया जा सकता है।
सिद्धारमैया के पोते को मंत्री बनाने पर विचार
चूँकि सिद्धारमैया के बड़े बेटे का निधन हो चुका है और दूसरे बेटे की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है, इसलिए उम्र के 80वें पड़ाव पर खड़े सिद्धारमैया का अपने पोते से गहरा लगाव है। सूत्रों की मानें तो आलाकमान इस लगाव का इस्तेमाल कर सकता है और उनके पोते को कैबिनेट में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
अंतिम फैसला हाईकमान की बैठक के बाद
अंतिम फैसला सोनिया गांधी के विदेश से लौटने के बाद लिया जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, और प्रभारी रणदीप सुरजेवाला की उपस्थिति में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के साथ एक निर्णायक बैठक होगी।
डीके का ढाई साल का पुराना वादा
सूत्रों के मुताबिक, चुनाव से ठीक पहले विवाद को थामने के लिए आलाकमान के सामने यह तय हुआ था कि:
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पहले सिद्धारमैया सीएम बनेंगे।
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ढाई साल बाद डीके शिवकुमार को सीएम की कुर्सी मिलेगी।
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तब तक डीके शिवकुमार अकेले डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे।
जैसे ही ढाई साल का समय करीब आया, डीके शिवकुमार ने आलाकमान को अपना पुराना वादा याद दिलाया और सीएम पद की मांग तेज़ कर दी।
कांग्रेस आलाकमान की दुविधा
कांग्रेस आलाकमान की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वह आज के राजनीतिक माहौल में दोनों में से किसी को भी नाराज़ नहीं करना चाहती:
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सिद्धारमैया (उम्र 80): वह एक बड़े कद वाले मास लीडर हैं और अपनी जाति कुरुबा के सबसे बड़े नेता हैं।
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डीके शिवकुमार (उम्र 63): वह एक शानदार मैनेजर, मेहनती और वफादार खांटी कांग्रेसी हैं।
हालांकि, डीके शिवकुमार को हाल ही में लोकसभा चुनाव में उनके भाई डीके सुरेश की हार से झटका लगा है, जिसने उन्हें कुछ कमज़ोर किया है। साथ ही, विधायकों की संख्या में सिद्धारमैया आगे हैं, और डीके शिवकुमार वोकालिग्गा समुदाय के सबसे बड़े नेता नहीं हैं (इस जाति से देवेगौड़ा परिवार भी आता है)। इसके अलावा, उन पर चल रहे ईडी (ED) के मामले भी उनकी स्थिति को थोड़ा मुश्किल बनाते हैं।
इन्हीं सभी जटिलताओं और समीकरणों को तौलते हुए, आलाकमान जल्दबाजी के बजाय ठोक-बजाकर यह फैसला करना चाहता है कि नेतृत्व परिवर्तन अभी किया जाए या कुछ समय बाद। इसी वजह से कर्नाटक में यह राजनीतिक देरी और बेचैनी बढ़ती जा रही है।