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SIR का खौफ या ममता की रणनीति! बांग्लादेश की सीमा पर उमड़े घुसपैठियों का क्या सच?

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Posted On:Friday, November 28, 2025

पश्चिम बंगाल के बांग्लादेश से सटे उत्तर 24 परगना ज़िले के हकीमपुर बॉर्डर ऑउटपोस्ट (BOP) पर इन दिनों लगातार भीड़ जमा होने की ख़बरें आ रही हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों और वीडियो में दावा किया जा रहा है कि भारत में लंबे समय से अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठिए SIR (Systematic Information Retrieval) प्रक्रिया के भय से अब वापस बांग्लादेश लौट रहे हैं। ये लोग बच्चों और महिलाओं के साथ हकीमपुर पहुँच रहे हैं और सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवानों से वापस बांग्लादेश जाने की गुहार लगा रहे हैं।

राज्यपाल ने की स्थिति की समीक्षा

इन वायरल ख़बरों और तस्वीरों के बाद, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने स्वयं हकीमपुर बॉर्डर आउटपोस्ट का दौरा किया। उन्होंने अवैध बांग्लादेशियों के कथित 'रिवर्स माइग्रेशन' की इन रिपोर्ट्स की समीक्षा की।

हालांकि, जिस दिन राज्यपाल ने बुधवार को आउटपोस्ट का दौरा किया, उस दिन वहाँ से बांग्लादेश लौटने वाले लोगों की कोई कतार या भीड़ मौजूद नहीं थी। लेकिन राज्यपाल के वापस लौटने के बाद, ख़बरों के अनुसार, हकीमपुर आउटपोस्ट पर फिर से अवैध बांग्लादेशियों की भीड़ उमड़ पड़ी है, जो बांग्लादेश लौटना चाहते हैं।

SIR के खौफ की कहानी

बांग्लादेश लौटने वाले इन लोगों में से अधिकतर मुस्लिम समुदाय से हैं। उनका कहना है कि वे लोग अवैध रूप से भारत में आए थे। अब जबकि SIR की प्रक्रिया चल रही है और मतदाता सूची के शुद्धिकरण का काम हो रहा है, उन्हें डर है। उनका दावा है कि उनके या उनके परिवार का नाम 2002 या 2003 की SIR की लिस्ट में नहीं है। इस आशंका से कि उन्हें देश से बाहर भेजा जा सकता है, वे स्वतः ही बांग्लादेश लौटना चाहते हैं।

दावे की सत्यता पर सवाल

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय इस 'पलायन' के दावे पर सवाल उठा रहे हैं। वे स्वीकार करते हैं कि 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत आए और उसके बाद भी घुसपैठ जारी रही है। इन घुसपैठियों ने भारत में एपिक कार्ड (EPIC Card), आधार कार्ड, पैन कार्ड और संपत्ति भी बना ली है।

उनका तर्क है कि SIR प्रक्रिया से भले ही मतदाता सूची में नाम शामिल करने में उन लोगों को परेशानी हो, जिनके नाम वैध दस्तावेज़ों में नहीं हैं, लेकिन जिनके पास पासपोर्ट, डोमिसाइल सर्टिफिकेट जैसे 12 मान्य प्रमाणपत्र हैं, वे अपने नाम मतदाता सूची में शामिल करवा सकते हैं। ऐसे में, केवल SIR के भय से बड़े पैमाने पर घुसपैठियों के पलायन की बात की सत्यता पर सवाल खड़े होते हैं।

राजनीतिक रार: ममता बनाम भाजपा

इस मुद्दे को लेकर पश्चिम बंगाल की राजनीति गरमा गई है।

  • तृणमूल का आरोप: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार SIR का विरोध कर रही हैं और इसकी तुलना NRC से कर रही हैं। भाजपा का आरोप है कि ममता बनर्जी एक विशेष समुदाय, खासकर मुस्लिम मतदाताओं और बांग्लादेश से आकर बसे लोगों के बीच जानबूझकर भय पैदा करने की कोशिश कर रही हैं। उनका मानना है कि 2021 के विधानसभा चुनाव की तरह, ममता बनर्जी इस बार भी मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही हैं, क्योंकि बंगाल की आबादी में लगभग 32% मुस्लिम हैं, जिनमें बड़ी संख्या बांग्ला भाषी मुसलमानों की है।

  • भाजपा का पलटवार: बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी पर SIR के नाम पर भ्रम और आतंक पैदा करने का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि ममता बनर्जी को डर है कि इस प्रक्रिया से उनके अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के वोटर लिस्ट से नाम कट जाएँगे। शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि ममता बनर्जी SIR नहीं रोक पाएंगी और राज्य की जनता उन्हें सत्ता से बाहर कर देगी।

कुल मिलाकर, सीमा पर कथित 'रिवर्स माइग्रेशन' की घटना ने SIR प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक और सामाजिक तनाव को और बढ़ा दिया है, जिससे चुनावी माहौल पर असर पड़ना तय है।


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